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"मैं दिल्ली में मुगल बादशाह के यहाँ जाना चाहता हूँ।" इसके साथ उसने रायसल को भी दिल्ली चलने के लिये कहा। रायसल की समझ में आ गया। वह साहसी और आशावादी था। अपने बीस सवारों के साथ वह दिल्ली पहुंच गया। इन दिनों में अफगानों के आक्रमण को रोकने के लिये दिल्ली में बादशाह की एक फौज तैयार हो रही थी। रायसल किसी से बिना कुछ कहे-सुने अपने बीस सवारों के साथ युद्ध क्षेत्र पर गया। उस लड़ाई में रायसल के द्वारा अफगानों का एक प्रसिद्ध सेनापति मारा गया। उसके गिरते ही युद्ध में मुगलों की विजय हुई। मुगल सेनापति को रायसल के सम्बन्ध में कुछ भी जानकारी न थी। उसने साधारण तौर पर इस बात का अनुसन्धान किया कि अफगानों के सेनापति को मारने वाला कौन व्यक्ति है। लेकिन कुछ पता न चला। इस दशा में मुगल सेनापति ने जियाफत नाम से अपने समस्त सैनिकों की एक सभा का आयोजन किया। उसके सम्बन्ध में बताया गया कि जो लोग अफगानों के इस युद्ध में लडने के लिये गये थे, वे सभी इस जियाफत में शरीक हों और मुगल प्रधान सेनापति के प्रति अपना सम्मान प्रकट करें। मुगल सेना में जियाफत का आयोजन किया गया। उसमें सभी प्रमुख व्यक्तियों और शूरवीरों ने प्रधान सेनापति के सामने आकर अपना-अपना सम्मान प्रकट किया। रायसल के पहुँचने पर उसे लोगों ने जान लिया। जियाफत का आयोजन समाप्त होने पर रायसल से उसका परिचय पूछा गया। अमरसर का राजा नूनकरण भी अपनी सेना के साथ वहाँ उपस्थित था। रायसल के साथ उसको ईर्ष्या उत्पन्न हुई। उसने रायसल से कहा- "मेरे आदेश के बिना आप यहाँ पर कैसे आये?" रायसल ने उसके इस प्रश्न का कुछ उत्तर न दिया। रायसल से परिचित होकर प्रधान सेनापति उसे अपने वादशाह के पास ले गया और अकबर बादशाह के निकट पहुँच कर प्रधान सेनापति ने रायसल की प्रशंसा करते हुए उसका परिचय दिया। बादशाह अकवर ने उसी समय रायसल को "रायसल दरबारी" की उपाधि दी और देवासो तथा कासली नाम के नगरो का अधिकार उसे दिया। यहीं से रायसल के सौभाग्य का उदय हुआ। कुछ दिनों के बाद बादशाह के बुलाये जाने पर वह फिर दिल्ली गया। उस समय भटनेर में युद्ध करने के लिये मुगलों की सेना जा रही थी, बादशाह ने रायसल को भी उस युद्ध में भेजा। भटनेर के संग्राम मे रायसल ने अपने जिस शौर्य का प्रदर्शन किया। उससे खुश होकर वादशाह ने खण्डेला तथा उदयपुर के शासन की सनद भी उसे दी। ये दोनों नगर निर्वाण राजपूतों के अधिकार मे थे। परन्तु उन्होने सम्राट के प्रति अपने विद्रोही व्यवहार प्रकट किये थे। बादशाह ने जो अन्तिम दो नगरों का अधिकार रायसल को दिया था, उसे वहाँ के शासक राजपूतो को पराजित करके उनके प्रभुत्व को वहाँ पर नष्ट करना था। रायसल ने भटनेर के संग्राम में जाने के पहले खण्डेला के राजा की लड़की के साथ विवाह किया था। उस विवाह में रायसल को दहेज बहुत कम मिला था। इसलिये रायसल ने खण्डेला के राजा से दहेज को पूरा करने के लिये कहा। इसके उत्तर मे उसने कहा- "अधिक देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है। मेरे अधिकार में एक शिखर है। यदि आप चाहे तो उसे ले सकते है।" इसके बाद रायसल भटनेर के युद्ध में गया और वहाँ से लौटने पर वह अपनी सेना के साथ खण्डेला की तरफ बढ़ा। सेना के साथ रायसल को आता हुआ सुनकर खण्डेला का 143