समस्त सम्पत्ति अपने अधिकार में कर ली और वहाँ की बहुमूल्य सामग्री और सम्पत्ति चौबीस हजार खच्चरों पर लाद कर वह ले गया। साठ हजार अश्वारोही और अगणित पैदल सैनिकों की सेना उसके अधिकार में थी। राजा भट्टी ने सिंहासन पर बैठने के वाद लाहोर ने अपनी सेना एकत्रित की और कनकपुर के राजा वीरभानु ववेले के साथ युद्ध किया। उस युद्ध में वीरभानु के चालीस हजार सैनिक मारे गये। भट्टी की मृत्यु हो जाने पर उसका पुत्र मंगलराव सिंहासन पर बैठा। इसके शासन काल में गजनी के राजा धुन्धी ने अपनी विशाल सेना लेकर लाहौर पर आक्रमण किया। मंगलराव युद्ध से ववराकर अपने बड़े पुत्र के साथ नदी के तट पर स्थित जंगल में भाग गया। शालिवाहनपुर में उसके परिवार के लोगों को शत्रुओं ने जाकर वेर लिया। जव मंगलराव ने यह सुना तो वह जिस जंगल में जाकर छिप गया था, वहाँ से भाग कर वह लक्खा जंगल में चला गया। वहाँ पर किसानों की आवादी थी। इसलिये मंगलराव ने उनको अपनी अधीनता में लंकर वहाँ पर अपना राज्य कायम किया। उसके दो लड़के पैदा हुये। एक का नाम था, अभयराव और दूसरे का नाम, शरणराव। अभय राव ने वहाँ के समस्त नगरों की जीत कर अपने राज्य का विस्तार किया। इसके बाद उसके वंशजों की संख्या बढ़ी और वे लोग आभारिया भट्टी के नाम से प्रसिद्ध हुये। शरणराव अपने भतीजे से लड़कर कहीं चला गया। भट्टी के बड़े पुत्र मंगलराव ने तुर्कों के भय से पिता की राजधानी शालिवाहनपुर को छोड़ दिया था और वहाँ से भागकर वह जंगल में चला गया। उसके छ: लड़के थे, जो इस प्रकार हैं- 1. मंडमराव 2. कलरसी 3. मूलराज 4. शिवराज 5. फूल और 6. केवल। राजधानी से मंगलराव के भाग जाने पर उसके पुत्रों और परिवार के लोगों की रक्षा उसकी प्रजा ने की। तक्षक वंशी सतीदास नाम का वहाँ पर एक भूमिधर रहता था। उसके पूर्वजों के साथ भट्टी राजाओं ने भयानक अत्याचार किये थे। उसने अपने पूर्वजों का बदला लेने के लिए विजयी तुर्को से जाहिर किया कि मंगलराव के पुत्र और कुटुम्ब के लोग इसी नगर के एक वर में रहते हैं। उसकी इस बात को सुनकर कुछ तुकं सैनिक उसके साथ गये। सतीदास ने तुर्क मैनिकों को लेकर श्रीधर महाजन के यहाँ मंगलराव के लड़कों को कैद कराया और वे राजकुमार तुर्क सेना के सामने लाये गये। उस सेना के प्रधान ने श्रीधर से कहा :- "शालिवाहन के प्रत्येक राजकुमार को तुम मेरे सामने लेकर आओ, नहीं तो मैं तुम्हारे परिवार में किसी को जिन्दा न छोडूंगा।" इस बात को सुनते ही श्रीधर अत्यन्त भयभीत हुआ और ववरा कर उसने कहा- "मेरे यहाँ अव राजा का कोई लड़का नहीं है। जो लड़के मेरे यहाँ रहते हैं, वे एक भूमिधर के बालक हैं। वह भूमिधर इस युद्ध के भय से भाग गया है।" तुर्कों के सेनापति ने उसकी वात का विश्वास नहीं किया और जिन लड़कों के रहने की बात उसने कही, उसने उनको लाने का आदेश दिया। जव श्रीधर महाजन ने देखा कि राजकुमारों के प्राणों की रक्षा का अब कोई उपाव नहीं है, तो उसने तुर्क सेनापति की आजा का पालन किया । यदुवंशी राजकुमार किसान बालकों . 9
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।