पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१४८

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शेखावटी का इतिहास बालो जी व उसका शेखावत वंश इस राज्य का इतिहास शेखावत वंश के इतिहास के साथ आरम्भ होता है। इस वंश का सम्बन्ध आमेर के सामन्तों के साथ है और इस वंश का शेखावटी राज्य जयपुर के समान महत्व रखता है। यह बात जरूर है कि इस राज्य के नियम और कानून लिखे हुए नहीं हैं और न उसका कोई अधिकारी अथवा राजा ऐसा है, जिसे सभी स्वीकार करते हों। इस राज्य में कोई एक व्यवस्था नहीं है। लेकिन उसके सभी सामन्तों में एकता है। इस वंश के लोगों में कोई निश्चित राजनीति नहीं पायी जाती। उनको जव कभी किसी समस्या के निर्णय की जरूरत होती है, उस समय शेखावटी के सभी सामन्त उदयपुर में एकत्रित होकर निर्णय करते हैं और उनके द्वारा जो निश्चय होता है, उसे सभी स्वीकार करते हैं। आमेर के राजा उदयकर्ण के तीसरे पुत्र बालोजी को सन् 1388 ईसवी मे सिंहासन पर बैठने का अधिकार प्राप्त हुआ था। शेखावत लोग उसी के वंशज हैं। उन दिनों आमेर की राजनीतिक अवस्था केसी थी, यदि उस पर ध्यान दिया जाता है तो साफ जाहिर होता है कि उस समय चौहान और नरवर राजवंश के सामन्त उस राज्य के विभिन्न भागों पर शासन करते थे। उनकी शक्तियाँ अलग-अलग थीं। यही कारण था कि मुसलमानों के आक्रमण के समय उनको सभी प्रकार के अत्याचार सहने पडे थे। इस समय जो शेखावत वंश विशेप रूप से प्रसिद्ध है, बालोजी इस वंश का आदि पुरुप था। बालोजी का पोता अमरसर मे शासन करता था। वहाँ का शासन उसे किस प्रकार मिला था, इसको समझने के लिये हमारे पास कोई सामग्री नहीं है। उसके तीन लड़के पैदा हुए थे। पहले का नाम था मोकलजी, दूसरे का नाम था खेमराज और तीसरे का नाम था खारद । मोकल अपने पिता के स्थान पर अमरसर का शासक हुआ। दूसरे पुत्र खेमराज के वंशज वाला पोता के नाम से प्रसिद्ध हुए। खारद के नूमन नाम का एक बालक पैदा हुआ। उसके वंशज कुम्भावत नाम से प्रसिद्ध हुए। इन दिनों में कुम्भावत लोगों का नाम प्रायः लोप सा हो गया है। मांकल के बहुत समय तक कोई सन्तान पैदा नहीं हुई। एक मुसलमान फकीर का नाम था, मेखबुरहान अन्त में उसके आशीर्वाद से पैदा होने वाले वालक का नाम शेखाजी रखा गया। राजस्थान में इस समय जो शेखावत वंश प्रसिद्ध है उसका आदि पुरुप यही शेखाजी था। 140