पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१३७

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साथ भाग गया। कछवाहा और राठौर सेना ने मराठों की समस्त सम्पत्ति और सामग्री पर अधिकार कर लिया। इस युद्ध में सिंधिया के साथ युद्ध करने के लिए प्रतापसिंह स्वयं गया था। सन् 1789 ईसवी के इस युद्ध में विजयी होकर प्रतापसिंह ने एक विशाल उत्सव किया और उसने चौबीस लाख रुपये दीनों-दरिद्रों को दान में दिये। तुंगा के युद्ध में विजयी होने के बाद प्रतापसिंह के राजस्थान में बहुत ख्याति मिली। मराठों की पराजय से चारों ओर के राज्यों में शान्ति कायम हुई। लेकिन यह परिस्थिति बहुत दिनों तक न रही। कई वर्षों के बाद माधवजी सिंधिया एक नयी सेना संगठित करके रवाना हुआ और उसने मारवाड़ को विध्वंस करने का निश्चय किया। यह समाचार पाकर विजयसिंह ने प्रतापसिंह के पास अपना दूत भेजा। राजा प्रतापसिंह ने मराठा सेना के आने का समाचार सुनते ही अपनी सेना को तैयार होने का आदेश दिया और तुरन्त मराठों के साथ युद्ध करने के लिए राठौर और कछवाहों की सेना ने संयुक्त मोर्चा तैयार किया। उन दिनों मे एक ओर मराठों के साथ युद्ध आरम्भ हुआ और दूसरी ओर राठौर कवियों ने राठौर सैनिको को प्रोत्साहित करने लिए जो गीत गाए, उनमें केवल राठौरों की प्रशंसा थी। कछवाहा सैनिकों पर इसका दूपित प्रभाव पड़ा। इसका प्रभाव यह हुआ कि आमेर की सेना युद्ध में उदासीन हो गयी। कछवाहा सैनिकों की सहायता न मिलने के कारण इस युद्ध मे राठौरों की पराजय हुई। राठौर राजा विजयसिंह के साथ आमेर राज्य की जो सन्धि हुई थी, वह टूट गयी। इसलिए सन् 1791 ईसवी मे तुको जी होलकर ने जयपुर राज्य पर आक्रमण किया। उस युद्ध में प्रतापसिंह की पराजय हुई और उसे होलकर को वार्पिक कर देना स्वीकार करना पड़ा। बाद में अमीर खाँ उस कर को वसूल करने का अधिकारी बना दिया गया। उस समय से लेकर प्रताप की मृत्यु के समय सन् 1833 ईसवी तक जयपुर राज्य की दशा बहुत खराब रही। इन दिनों में मराठा और फ्रांसीसी सेना ने भयानक रूप से जयपुर का विनाश किया। प्रतापसिंह ने आमेर के सिंहासन पर बैठकर पच्चीस वर्ष तक शासन किया। वह साहसी और दूरदर्शी था। लेकिन लुटेरे शत्रुओ के कारण वह अधिक सफलता प्राप्त न कर सका। माचेड़ी राज्य के निकल जाने के कारण जयपुर राज्य की आमदनी बहुत कम हो गयी थी। मराठों के कई बार आक्रमण होने पर प्रतापसिंह को लाखों रुपये उनको देने पड़े थे, इससे आमेर राज्य का खजाना खाली हो गया। मराठो ने उस राज्य से सब मिलाकर अस्सी लाख रुपये वसूल किये। राजपूतों की अधोगति का कारण उनकी संकुचित विचारधारा थी। मराठों ने जिस प्रकार अत्याचार करके राजस्थान के राज्यो का विध्वंस और विनाश किया, उसका बदला लेने के लिए स्वाभिमानी प्रतापसिंह ने अपने राज्य का शासन अपने हाथों में लेते ही जो योजना तैयार की थी और जिसके अनुसार मारवाड़ के राजा विजयसिंह ने एक बार उसका साथ दिया, उसके द्वारा प्रतापसिंह ने निश्चित रूप से मराठों को सदा के लिए निर्वल कर दिया होता। लेकिन सिंधिया के दूसरी वार आक्रमण करने पर मारवाड़ के कवियों ने जिस संकुचित विचारधारा से काम लिया, उसके फलस्वरूप न केवल मारवाड का वल्कि आमेर राज्य का भी पतन हुआ। उसका विवरण ऊपर लिखा जा चुका है। 1 -