हाथ में लेने के बाद बड़ी रानी ने फीरोज नामक महावत को दरबार का सदस्य नियुक्त किया। रानी का यह कार्य राज्य के सामन्तों को अच्छा न लगा। महावत की इस नियुक्ति से दरवार के सदस्यों का अपमान होता था। इसलिए सामन्तों ने रानी के इस कार्य का विरोध किया। परन्तु उसके कुछ परवाह न करने पर राज्य के समस्त सामन्त अप्रसन्न होकर राजधानी से अपनी- अपनी जागीरों में चले गये। बड़ी रानी ने उनके चले जाने की कुछ परवाह न की और उसने मराठों से मिलकर अम्बाजी की अधीनता में एक वैतनिक सेना अपने राज्य में रखी। उस सेना ने मालगुजारी वसूल करने का काम किया। इन दिनों में आरतराम नामक व्यक्ति आमेर का प्रधानमन्त्री था और खुशहाली राम बोरा राज्य का एक मन्त्री था। बोरा राजनीति मे अत्यन्त कुशल था। लेकिन फीरोज के प्रभुत्व ने उसकी मर्यादा को भी क्षीण बना दिया था। रानी ने प्रभावित होकर एक साधारण महावत को अपने मन्त्रिमण्डल में रखा था। लेकिन रानी से विशेप अनुराग रखने के कारण उसका प्रभाव मन्त्रिमण्डल से लेकर सम्पूर्ण राज्य पर हो गया, इस दशा में राज्य के शासन का कार्य नौ वर्षो तक चलता रहा। इन्हीं दिनो में आमेर का राजा पृथ्वीसिंह घोड़े से गिर कर मर गया। इस दुर्घटना से राज्य के सर्वसाधारण में यह अफवाह फैल गयी कि बड़ी रानी ने अपने लड़के प्रतापसिंह को राज्य के सिंहासन पर बिठाने के लिए विप देकर पृथ्वीसिंह को मरवा डाला है। यद्यपि इस अफवाह का आधार सही नही था क्योंकि पृथ्वीसिंह के न रहने पर राज्य का उत्तराधिकारी उसका भाई और बड़ी रानी का लड़का प्रतापसिंह नहीं हो सकता था। इसीलिए कि पृथ्वीसिंह का विवाह कृष्णगढ़ की राजकुमारी से विवाह हुआ था और उससे मानसिंह नामक एक लडका पैदा हुआ था। पृथ्वीसिंह के बाद राज्य का उत्तराधिकारी यह बालक मानसिंह था। इस दशा में बड़ी रानी के द्वारा पृथ्वीसिंह को मारे जाने का कोई अर्थ नहीं निकलता। वास्तव में वह घोड़े से गिर कर मरा था। पृथ्वीसिंह के मर जाने पर मानसिंह की माता को अपने पुत्र के सम्बन्ध में भय उत्पन्न हुआ, इसलिए उसने अपने बालक को कृष्णगढ़ भेज देने का इरादा किया। लेकिन वहाँ पर भी उसे सन्देह हुआ। इसलिए वह अपने बालक को लेकर सिंधिया के यहाँ चली गयी और वही पर बालक मानसिंह का पालन-पोपण होने लगा। पृथ्वीसिंह के परलोकवासी होने पर आमेर के सूने सिंहासन पर बड़ी रानी का लड़का प्रतापसिंह बैठा। खुशहाली राम इन दिनों में आमेर का प्रधानमन्त्री था। उसने अभिपेक के समय प्रतापसिह की सभी प्रकार सहायता की। खुशहाली राम को राजा की उपाधि दी गयी थी और वह प्रधानमन्त्री की हैसियत से आमेर राज्य में काम कर रहा था। संयोग की बात है कि फीरोज के साथ उसका भीतर ही भीतर विरोध चल रहा था। प्रधानमंत्री खुशहाली राम ने फीरोज के प्रभुत्व को मिटा देने का प्रयत्न किया। इसके लिए उसने जिन उपायों का आश्रय लिया, उनसे माचेड़ी के सामन्त को अपनी स्वतन्त्रता प्राप्त करने में बडी सहायता मिली। प्रतापसिंह के अभिषेक के समय आमेर राज्य के सभी सामन्तों ने भाग लिया था। लेकिन माचेड़ी का सामन्त राजधानी में नहीं आया था। प्रधानमन्त्री खुशहाली राम की राजनीतिक चाले फीरोज के विरोध मे चल रही थी और इसके लिए उसने जो कुछ कर रखा था, उसमे प्रमुख बात यह थी कि उसने आमेर के मन्त्रिमण्डल से फीरोज को हटाने के लिए दिल्ली के मुगल बादशाह से भी भेट की थी। 126
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