पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१३

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-- इसके बाद खुरासान की फौज रवाना होकर गजनी से दस मील की दूरी पर आ गयी। राजा गज ने गजनी की रक्षा का उत्तरदायित्व अपने चाचा श्रीदेव को सौंपा और वह अपनी सेना लेकर शत्रु के साथ युद्ध करने के लिए रवाना हुआ। खुरासान के बादशाह ने अपनी फौज को पाँच भागों में विभक्त करके राजा गज की सेना पर आक्रमण किया। राजा गज अपनी सेना को तीन भागों में बॉट कर शत्रु के साथ युद्ध आरम्भ किया। उस युद्ध में खुरासान का वादशाह और राजा गज-दोनों ही मारे गये। इस भीपण युद्ध में एक लाख म्लेच्छों और तीस हजार हिन्दुओ ने अपने प्राणों को उत्सर्ग किया। इसके बाद खुरासान नरेश के लड़के ने गजनी पर आक्रमण किया। उसके साथ युद्ध करते हुए श्रीदेव ने तीस दिन तक गजनी की रक्षा की। इसमें नौ हजार मनुष्यों का सर्वनाश हुआ। इसी समय श्रीदेव ने गजनी में जौहर व्रत की पूर्ति की।* पिता के मारे जाने का समाचार सुन कर शालिवाहन बारह दिनों तक पृथ्वी पर सोया। उसके बाद पंजाब में आकर एक स्थान पर उसने अपनी नयी राजधानी कायम की और उसका नाम शालिवाहनपुर रखा। उस राजधानी के आस-पास जो भूमिधर रहते थे, उन्होंने वहाँ आकर शालिवाहन को अपना राजा माना। विक्रम सम्वत् 72 के भादो के महीने मे अष्टमी रविवार के दिन शालिवाहनपुर राजधानी की प्रतिष्ठा हुई। शालिवाहन ने पंजाब के अनेक राज्यों को जीतकर अपने शासन को शक्तिशाली बनाया। उसके पन्द्रह लड़के पैदा हुए। जिनमें तेरह लड़कों के नाम इस प्रकार हैं- 1. बालन्द 2. रसाल 3 धर्माङ्गद 4. बच्च 5. रूपा 6. सुन्दर 7 लेख 8 जसकर्ण 9. नीमा 10. मात 11. नेपक 12 गाङ्गेव और 13 जागेव। इन सभी राजकुमारों ने अपनी शक्तियों के द्वारा स्वतंत्र राज्यों की स्थापना की। बालन्द के युवावस्था में पहुंचने पर दिल्ली के तोमर वंशी राजा जयमाल ने अपनी लड़की के विवाह का उसके साथ प्रस्ताव किया और राजपूतों की प्रचलित प्रणाली के अनुसार नारियल भेजा। बालन्द ने उसको स्वीकार कर लिया। दिल्ली की राजकुमारी के साथ बालन्द का विवाह हो गया। वह अपनी नव विवाहिता पत्नी के साथ दिल्ली से शालिवाहनपुर आया। इन्हीं दिनों में शालिवाहन ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये तैयारियां शुरू कर दी और थोड़े ही दिनों में अपनी सेना लेकर वह अटक नदी को पार करके आगे बढ़ा। गजनी की म्लेच्छ सेना ने उसके साथ युद्ध किया। शत्रु की तरफ से 20 हजार सैनिक रणभूमि में पहुंचे। उस भयानक संग्राम में गजनी के म्लेच्छ मारे गये। शालिवाहन ने अपनी सेना लेकर गजनी पर अधिकार कर लिया। कुछ दिनों तक वह गजनी में बना रहा। उसके बाद वहाँ का शासन अपने बड़े पुत्र बालन्द को सौंप कर वह अपनी राजधानी लौट आया। इसके कुछ ही दिनों के बाद तैतीस वर्ष नौ महीने तक राज्य करके, उसने परलोक की यात्रा की। जौहर व्रत का वर्णन मेवाड के इतिहास में लिखा जा चुका है। अपने परिवार और दूसरे लोगों के साथ शालिवाहन गजनी से भागकर पंजाब में चला आया था और राजा गज के मारे जाने के बाद विक्रम सम्वत 72 के भादो के महीने में सन् 16 ईसवी को शालिवाहनपुर राजधानी की प्रतिष्ठा की। उस स्थान का सही उल्लेख पुराने ग्रन्थों में नहीं मिलता। लेकिन उस समय की अनेक बातों के आधार पर मालूम होता है कि वह स्थान लाहौर के समीप था।

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