पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१२९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रकार के प्रतिष्ठा के विरुद्ध कार्य किये थे। परन्तु मेवाड़ का एक राणा वंश ही ऐसा था, जिसने उन दिनों में अपना मस्तक ऊँचा रखा था और इस प्रकार का ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे इस वंश की प्रतिष्ठा को किसी प्रकार का आघात पहुँच सकता। इस सन्धि के पहले आमेर और मारवाड़ के राजाओं ने जो इस प्रकार अप्रतिष्ठापूर्ण कार्य किये थे, उनसे उनके मेवाड़ के राणा वंश के साथ वैवाहिक सम्वन्ध वन्द हो गये थे। लेकिन इस सन्धि के बाद वे फिर आरम्भ हो गये। विवाह के सम्बन्ध को प्रचलित करने के लिए सवाई जयसिंह ने मेवाड़ की राजकुमारी के साथ विवाह किया था। लेकिन विवाह होने से पहले ही दोनों ओर से इस वात का निर्णय हो गया कि आमेर राज्य में मेवाड़ की राजकुमारी का विवाह होने पर यदि उससे वालक होगा तो वह अपने पिता के राज्य का उत्तराधिकारी होगा। राजस्थान की प्रथा के अनुसार वड़ा लड़का राज्य का अधिकारी होता है। लेकिन मेवाड़ की राजकुमारी से उत्पन्न होने वाले वालक पर वहाँ की इस प्रथा का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि उस राजकुमारी से लड़की उत्पन्न होगी तो वह किसी भी अवस्था में और किसी भी परिस्थिति में मुगल बादशाह के वंश में नहीं दी जाएगी। सवाई जयसिंह और मारवाड़ के राजा ने मेवाड़ के राणा की इन शर्तो को स्वीकार कर लिया था। उसके बाद राणा वंश की राजकुमारी का विवाह सवाई जयसिंह के साथ हुआ था। विवाह के बाद उस राजकुमारी से एक बालक पैदा हुआ। उसका नाम माधव सिंह रखा गया। राजा जयसिंह ने अपने जीवनकाल में ही उस बालक के सम्मान की रक्षा के लिए आमेर राज्य के टोंक, रामपुरा, फागी और मालपुरा नामक चार परगने माधवसिंह को दे दिये और उन्हीं दिनों में मेवाड़ के राणा ने भी माधव सिंह को मेवाड़ राज्य के रामपुरा और भानपुरा नामक नगर दिये। माधव सिंह को मिले हुये इन नगरों की वार्षिक आय चौरासी लाख रुपये थी। सिंहासन पर बैठे हुये ईश्वरी सिंह को कई वर्ष वीत गये। आरम्भ से ही सामन्तों के साथ उसका व्यवहार सन्तोषजनक नहीं रहा। इसलिये राज्य के सभी सामन्त ईश्वरी सिंह को सिंहासन से उतार कर माधव सिंह को राज्य का अधिकार देने का विचार करने लगे। ईश्वरी सिंह को सामन्तो के इन षड़यन्त्रों का कुछ भी पता नहीं था। उसके व्यवहारों के कारण ही राज्य की प्रजा भी उससे प्रसन्न न थी। पिता और राणा से जो नगर माधव सिंह को मिले थे, उनको लेकर वह सन्तोषजनक अपना जीवन विता रहा था। ईश्वरी सिंह से लगातार अप्रसन्न और असन्तुष्ट होकर आमेर राज्य के मन्त्रियों और सामन्तों ने मेवाड़ के राणा के पास माधव सिंह को सिंहासन पर विठाने के लिए संदेश भेजा और उस संदेश के आधार पर राणा ने अपने दूत के द्वारा ईश्वरी सिंह को कहला भेजा- "विवाह के पहले सवाई जयसिंह और मेरे वीच यह निर्णय हो गया था कि राणा राजवंश की राजकुमारी के साथ विवाह करने से जो वालक पैदा होगा, किसी भी दशा में वह अपने पिता के राज्य का उत्तराधिकारी होगा। इसके बाद मेवाड़ की राजकुमारी के साथ जयसिंह का विवाह हुआ था। मरने के पूर्व भी सवाई जयसिंह ने निर्णय किया था कि अवस्था में छोटा होने पर भी मेरे बाद आमेर के सिंहासन पर माधव सिंह बैठेगा। इसलिए आमेर राज्य का सिंहासन आप माधव सिंह को दे दे।" राणा का यह संदेश पाकर ईश्वरी चिन्तित हो उठा। उसने अपनी सहायता के लिए मराठों से मदद लेने का विचार किया और उसके वाद आपा जी सिंधिया के साथ उसने सन्धि