मिला। वह फिर भी वहीं पर पड़ा रहा और वहाँ पर उसको कई महीने बीत गये। उसके पास जो कुछ था, उसे उसने खाने-पीने में खर्च कर डाला। इसके बाद वह अपने साथ के घोड़ों को वेचकर दिन काटने लगा। इसके बाद भी उसे अपनी अभिलापा पूरी करने का अवसर न मिला। उस दशा में उसने अपने साथ के सैनिकों को भेज दिया और अकेले रहकर अवसर की प्रतीक्षा करने लगा। इस बीच में उसने अपने अस्त्र-शस्त्र बेच डाले और उनसे जो कुछ मिला, उनके द्वारा उसने अपना समय व्यतीत किया। इसके बाद भी उसको अवसर न मिला। अब उसके पास केवल एक भाला रह गया था। उसने तीन दिन विना भोजन के काटे और चौथे दिन उसने अपनी पगड़ी बेच डाली। अब उसके पास बेचने के लिए कोई वस्तु न रह गयी थी। उसने अकस्मात् राजा जयसिंह को दुर्ग से बाहर निकल कर मोरा नामक मार्ग की तरफ जाते हुए देखा। उसी समय उसने अपना भाला फेंककर राजा जयसिंह को मारा । वह भाला जयसिंह को नहीं लगा। उसके साथ के एक सैनिक ने उस बड़गूजर को पकड़ लिया और अपनी तलवार से उसनं उसका सिर काट लेने का इरादा किया। उसी समय राजा जयसिंह ने जोर के साथ कहा- "इसको राजधानी में पकड़ कर ले आओ, यहाँ पर उसका प्राण नाश न करो।" बड़गूजर को पकड़ कर आमेर राजधानी में लाया गया। उसको देखकर राजा जयसिंह ने उससे प्रश्न किया- "तुम कौन हो और तुमने भाले का प्रहार किसलिये मेरे ऊपर किया?" उस बड़गूजर ने उत्तर देते हुए कहा- "मैं देवती के बडगूजर राजा का छोटा भाई हूँ। मैंने अपनी भावज के सामने आपकी छाती में भाला मारने की प्रतिज्ञा की थी। इसलिए इस राजधानी के समीप आकर और छिपे तौर पर रह कर मैं बहुत दिनों से पड़ा रहा। अवसर आने पर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए मैंने भाले का प्रहार आपके ऊपर किया है। अपने प्रहार मे मुझे सफलता नहीं मिली। आज मैं आपके सामने कैदी बनाकर लाया गया हूँ। आपको दण्ड देने का पूर्ण अधिकार है।" राजा जयसिंह उसकी बातों को सुनकर बहुत प्रभावित हुआ और विना किसी प्रकार का दण्ड दिये हुए उसने उसको छोड़ दिया। राजा जयसिंह ने उसकी इन दिनों की विपदा का हाल सुनकर उसे मूल्यवान वस्त्र दिये और पचास अश्वारोही सैनिकों के संरक्षण में उसको टसके राज्य भेज दिया। उसने अपने राज्य मे आकर सभी बातें अपनी भावज से कहीं। उन बातों को सुनकर उसकी भावज ने कहा- "आपने सोते हुए विपैले साँप को उकसाया है। इसके फलस्वरूप अव यह राज्य नष्ट हो जायगा।" राजोर के अनेक अनुभवी लोगों की सम्पति से बड़गूजर वंश के परिवार को अनूप शहर में बडगुजर राजा के पास भेज दिया गया और देवती राज्य के राजोर के दुर्ग में युद्ध की तैयारियाँ होने लगी। इसलिए कि वहाँ पर सवको विश्वास हो गया कि सवाई जयसिंह का शीघ्र ही आक्रमण अब इस राज्य पर होगा। ऊपर लिखी हुई घटना के चौथे दिन सवाई जयसिंह ने अपने सभी सामन्तों को बुलाया और अपने दरबार मे बैठकर उनसे कहा- "देवती राज्य पर तुरन्त अधिकार कर लेने की आवश्यकता है। इस कार्य के लिए मैं पानी का बीड़ा रखता हूँ। आप लोगो में से जो इसके लिए तैयार हो, वह इस बाड़े को उठा ले।" 116
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