कुछ सोच-समझकर अपने पुत्र को अपने पिता के यहाँ भेज दिया। पुत्र के बड़े होने पर बादशाह की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए उसने विजय सिंह को मुगल-दरवार में भेजा और इसके लिए उसने अपने बहुमूल्य आभूपण दरबार के प्रधान लोगो को पुत्र के द्वारा भेजे। वे आभूषण वहाँ पर उपहार में दरवार के अमीरों, उमराओं और अधिकारियों को दिये गये। इस प्रकार मुगल प्रधानमन्त्री कमरुद्दीन की सहानुभूति विजय सिंह के पक्ष में प्राप्त की गई। आमेर राज्य में वसवा नाम का नगर अधिक उपजाऊ और दूसरी बातों में भी बहुत प्रसिद्ध था। विजय सिंह उस नगर का अधिकार प्राप्त करना चाहता था और इसी उद्देश्य से उसने अपने पक्ष नं मुगल-दरवार की सहानुभूति प्राप्त की थी। यह बात मालूम होने पर आमेर के राजा जयसिंह ने अपने भाई विजय सिंह की अभिलापा बिना किसी प्रकार के संकोच के पूरी कर दी। विजय सिंह को इससे वहुत संतोप मिला। लेकिन दोनों भाइयों की माताओं में संतोप के स्थान पर ईर्ष्या भाव बढ़ने लगा। विजय सिंह की माता ने एक दिन अपने पुत्र से कहा- "तुम प्रधानमन्त्री कमरुद्दीन के पास जाओ और कहो कि बादशाह से कहकर तुम्हें आमेर के सिंहासन पर बिठावे। प्रधानमंत्री यदि चाहे तो वह यह कार्य तुरन्त करा सकता है। इस सहायता के लिए पाँच करोड़ रुपये देने का तुम प्रधानमंत्री से वादा करो। बादशाह से यह भी वादा करना कि उसके आदेश पर मैं पाँच हजार अश्वारोही सेना लेकर सदा मुगल-राज्य की सेवा करूँगा।" विजय सिंह ने अपनी माता की आज्ञा का पालन किया। वह प्रधानमंत्री के पास गया और माता के समझाने के अनुसार उसने सव कुछ उससे कहा। प्रधानमंत्री विजय सिंह को लेकर वादशाह के पास गया। बादशाह ने विजय सिंह की बातों को सुना। उसने प्रधानमंत्री से पूछा- "विजय सिंह के इन वादों की जमानत कौन देगा?" प्रधानमंत्री ने तुरन्त वादशाह से कहा, "विजय सिंह के इन वादों की जमानत मैं दूंगा। मैं उसकी तरफ से आपको यकीन दिलाता हूँ कि आमेर राज्य के सिंहासन पर बैठने पर विजय सिंह आपको पाँच करोड़ रुपये देगा और आपके हुक्म पर अपने पाँच हजार अश्वारोही सैनिकों के साथ वह सदा तैयार रहेगा।" प्रधानमंत्री की इन बातों को सुनकर बादशाह ने विजय सिंह की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और उसने विजय सिंह को आमेर का राज्य देने के लिए अपने प्रधानमंत्री से सनद तैयार करने के लिए कहा। इससे पहले किसी समय सवाई जयसिंह ने खान दौरान खॉ नामक मुसलमान अमीर से पगड़ी बदलकर उसके साथ भाई का सम्बन्ध कायम किया था। वह खान इन दिनों मे बादशाह के यहाँ उच्चाधिकारी था। उसने जब सुना कि बादशाह जयसिंह को सिहासन से उतार कर विजय सिंह को राज्य का अधिकार देने की तैयारी कर रहा है तो उसने कृपाराम नामक दूत को बुलाकर यह समाचार सुनाया और उसने कृपाराम को जयसिंह के पास भेज दिया। इन दिनों मे कमरुद्दीन खाँ का बादशाह के दरबार में बहुत प्रभाव था और उसने अपने कार्यो के द्वारा दरवार मे ऊँचा स्थान प्राप्त कर लिया था। जयसिंह उस समाचार को पाकर चिन्तित हो उठा। उसने तुरन्त अपने मन्त्री को बुलाकर दूत के द्वारा आया हुआ पत्र दिया। उसके मन्त्री ने वडी गम्भीरता के साथ सोचकर कहा कि वर्तमान सकटपूर्ण परिस्थिति 177
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