के दूसरे देशों से ज्योतिप के प्रसिद्ध विद्वानों को अपने यहाँ बुलाया करता था और उनका बहुत सम्मान करता था। उसके साथ देश के अनेक विद्वान ज्योतिपी रहा करते थे और राज्य की तरफ से उनको जागीर मिली हुई थी। ज्योतिप के अध्ययन और मनन में लगे रहने पर भी सवाई जयसिंह ने अपने राज्य आमेर की अनेक प्रकार से उस समय रक्षा की थी, जब भारतवर्ष में आपसी विद्रोह के साथ- साथ आक्रमणकारी जातियों के लगातार अत्याचार हो रहे थे। मुगल बादशाह के दरवार मे रहकर चिरकाल से चले आ रहे जजिया कर को खत्म करा देने का उसने सफल प्रयत्न किया था। आमेर राज्य के निकट अधिक सख्या मे शक्तिशाली जाट लोग रहते थे और उनके द्वारा आमेर राज्य मे भयानक उत्पात हुआ करते थे। राजा सवाई जयसिंह ने बडी बुद्धिमानी और दूरदर्शिता के साथ उनका दमन किया। सन् 1732 ईसवी मे शासक नियुक्त होने पर जयसिंह को मराठों के साथ संघर्प करना पड़ा था। उन दिनो मे सगठित होकर उन लोगों ने देश मे भयानक अत्याचार आरम्भ कर दिये थे। मराठों की संगठित शक्तियों को देखकर सवाई जयसिंह ने समझ लिया कि उनको रोक सकना बहुत कठिन है। इसलिए उसने मराठो के नेता बाजीराव के साथ सन्धि कर ली। इस सन्धि के सम्बन्ध मे इतिहास में कोई ऐसा उल्लेख नहीं मिलता, जिससे उसका स्पष्टीकरण हो सके। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि इस सन्धि का कारण क्या था। इस देश के एक ऐतिहासिक ग्रन्थ से पता चलता है कि वे दोनों एक ही देश के रहने वाले थे और उन दोनों का एक ही धर्म था, इसलिए उनमें सन्धि हो गयी। यद्यपि यह बात बहुत संगत नहीं मालूम होती। हमारा अनुमान है कि उन दोनो के बीच सन्धि हो जाने का कोई विशेष कारण था। लेकिन वह कारण क्या था, यह नहीं कहा जा सकता। बाजीराव के साथ उसकी सन्धि हुई और उसके फलस्वरूप कोई संघर्प नही बढा। सवाई जयसिंह की सहायता से ही बाजीराव मालवा का सूबेदार बना था। उस समय की घटनाओ के आधार पर इस देश के कुछ लेखको ने लिखा है कि सवाई जयसिह ने राजस्थान में मराठो के आने का रास्ता खोल दिया था। यह धारणा भी बहुत सही नहीं मालूम होती। इसलिये कि सवाई जयसिंह की सन्धि के बाद मराठों के आक्रमण और अत्याचार कुछ दिनों के लिए खत्म हो गये। यद्यपि उसके कुछ समय बाद वे फिर से आरम्भ हुए और दिल्ली तक वे आक्रमण पहुँच गये। सन् 1739 ईसवी में नादिरशाह के भारत पर आक्रमण करने पर राजपूत राजाओ ने मुगलो की तरफ से उसके साथ युद्ध नहीं किया। इसके कई कारण थे। नादिरशाह ने जिस विशाल सेना को लेकर भारत पर आक्रमण किया था, उसका सामना करना और उसे पराजित करना आसान न था। इस बात को राजपूत राजा जानते थे। एक कारण यह भी था कि राजपूतो के साथ मुगल बादशाहो के जो सम्बन्ध बहुत पहले से चले आ रहे थे, वे बहुत दिनो से निर्बल और शिथिल पड गये थे। राजा सवाई जयसिह के जीवन की अनेक ऐसी घटनाएँ हैं, जिनके कारण उसे गौरव मिला। यहाँ पर उनमें से कुछ घटनाओ का उल्लेख करना आवश्यक मालूम होता है। राजा विशन सिह के दो लडके पैदा हुये थे। एक का नाम था जयसिह और दूसरे का नाम था विजय सिह । दोनो का जन्म सौतेली माताओ से हुआ था। इस सम्बन्ध के कारण किसी अमंगल से विजय सिंह को क्षति न पहुँच सके, इसके लिए उसकी माता सतर्क रहती थी। उसने बहुत 110
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