धोलाराय से लेकर पृथ्वीराज तक इस वंश के प्रत्येक राजा ने स्वतन्त्रतापूर्वक शासन किया। सम्राट पृथ्वीराज के समय राव पजून का शासन दिल्ली की अधीनता मे था। परन्तु पृथ्वीराज की तरफ से उसके शासन में कभी किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं हुआ। बल्कि सम्बन्धी होने के कारण सम्राट पृथ्वीराज के दरबार में राव पजून को सम्मानपूर्ण स्थान मिला था। आमेर के राजाओं में भारमल्ल ने सबसे पहले मुस्लिम शासन के प्रति अपना मस्तक नीचा किया और यवन सम्राट के साथ उसने सामाजिक सम्बन्ध कायम किया। बावर के शासनकाल में भारमल्ल ने उसकी अधीनता स्वीकार की और हुमायूँ के समय वह पाँच सहस्त्र सेना पर अधिकारी बनाया गया। भारमल्ल के लड़के भगवानदास ने सिंहासन पर बैठने के बाद यवन सम्राट के साथ सामाजिक घनिष्ठता पैदा की। उसके फलस्वरूप वह बादशाह अकबर के दरवार में सम्मानपूर्ण माना गया। सम्राट अकबर शूरवीर, साहसी, दूरदर्शी और राजनीतिज्ञ था। अपनी राजनीति के बल पर उसने राजपूत राजाओं पर अधिकार प्राप्त किया था। उसने राजपूतों को अपना शुभचिन्तक बनाने के लिए तलवार का ही नहीं, राजनीति का भी आश्रय लिया था। वह जानता था कि तलवार के बल पर जो अधिकार और प्रभुत्व प्राप्त किया जाता है, वह बहुत दिनों तक नही चलता। इसलिए उसने राजपूतों को मिलाने और उन पर अधिकार प्राप्त करने के लिए जिस नीति का प्रयोग किया था, वह सर्वथा सफल हुई और उसके फलस्वरूप वह भारतवर्ष का सबसे बडा सम्राट माना गया। अपनी इस नीति का श्रीगणेश अकबर ने भगवानदास से आरम्भ किया था। उसने किन उपायो से कछवाहा राजा भगवानदास को मिलाकर अपना लिया था, उसका विशेष उल्लेख मुझे कहीं पढने को नहीं मिला। सम्मान देकर कोई भी किसी के हृदय पर अधिकार कर सकता है, मालूम होता है कि अकवर ने भगवानदास के साथ इस नैतिक बल का प्रयोग किया था और उससे राजा भगवानदास इतना प्रभावित हुआ था कि उसने शाहजादा सलीम के साथ जो बाद मे जहाँगीर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, अपनी लडकी का विवाह कर दिया। उस लडकी से जहाँगीर के लडके खुसरो का जन्म हुआ।' भगवानदास के भतीजे उत्तराधिकारी मानसिंह को अकबर के दरबार मे श्रेष्ठ स्थान मिला था। भगवानदास ने उस दरबार मे सम्मानित होकर सदा मुगल शासन का हित किया था और अनेक अवसरों पर अपने आपको सकट मे डालकर मुगल शासन का हित किया। खुतन से लेकर समुद्र तक कितने ही राज्यो मे अपनी तलवार से विजय करके वहाँ पर उसने मुगलों की पताका फहरायी थी। मानसिह ने उडीसा और आसाम को जीतकर उनको बादशाह अकबर मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखा है कि हिजरी 993 सन् 1556 ईसवी में भगवानदास की लडकी का विवाह शाहजादा सलीम के साथ हुआ था। उस समय राजा भगवानदास, उसका गोद लिया हुआ पुत्र मानसिह और मानसिह का लडका-तीनो सम्राट की सेना में सम्मानपूर्ण स्थान पा चुके थे। मानसिह को अधिक गौरव मिला था, कि उसने कई अवसरों पर बादशाह की प्रशसनीय सहायता की थी। मूल लेखक की उपरोक्त टिप्पणी का समर्थन दूसरे लेखको के द्वारा नहीं होता । उन लेखको का कहना है कि मानसिह भगवानदास का गोद लिया हुआ लडका नहीं था। बल्कि भगवन्तदास का लडका था और भगवानदास भगवन्तदास का भाई था। इस समय की सही घटनाये ये हैं कि राजा भारमल्ल ने अकबर के साथ अपनी लडकी का विवाह किया था। उसके बाद उसके बेटे भगवानदास ने अपनी लड़की का विवाह शाहजादा सलीम के साथ किया। -अनुवादक 102
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