क्षेत्र में मारे गये। हिन्दुओं की तरफ से जो मारे गये, उनकी संख्या चार हजार थी। इन म्लेच्छों ने इसके पहले सुबाहु पर आक्रमण किया था। राजा यदुभानु ने गज के साथ अपनी लड़की का विवाह निश्चित किया था। विवाह की तिथियाँ इन्हीं दिनों में थीं, जव कि म्लेच्छों के आक्रमण का समाचार गज के पिता राजा रिज को मिला था। इस आक्रमण के समाचार का कोई प्रभाव उस विवाह पर न पड़ा। गज अपने विवाह के लिए राजा यदुभानु के राज्य में गया था। वह यदुभानु की कुमारी हंसावती के साथ विवाह करके अपनी नव विवाहिता पत्नी के साथ युद्ध भूमि में आया। युद्ध का अंत हो चुका था। म्लेच्छ सेना के तीस हजार आदमी मारे जा चुके थे। खुरासान का राजा पूर्ण रूप से पराजित हो चुका था। परन्तु उन यवनों को पराजित करने में राजा रिज भयानक रूप से जख्मी हुआ और युद्ध भूमि में ही उसकी मृत्यु हो गयी। खुरासान का वादशाह पराजित होकर वहाँ से भाग गया और राजा रिज के साथ लगातार दो बार युद्ध करके वह पराजित हुआ। दूसरे युद्ध में जख्मी हो जाने के कारण रिज की मृत्यु हुई, परास्त होने के बाद खुरासान के बादशाह की सहायता के लिए रोम के वादशाह की एक इस्लामी फौज पहुँच गयी थी। यह फौज कुरान और इस्लाम का प्रचार करके अपने राज्य का विस्तार कर रही थी। यवनों की इस सेना के वहाँ पहुँच जाने पर म्लेच्छों ने फिर से युद्ध की तैयारी की। राजा रिज की मृत्यु हो चुकी थी। उसके पुत्र गज ने उसका स्थान लिया और तुरन्त उसने अपने मंत्रियों को बुलाकर परामर्श किया। म्लेच्छों के साथ जहाँ पर यह युद्ध हुआ था, वहाँ कोई ऐसा सुदृढ़ और विशाल दुर्ग न था, जिसका आश्रय लेकर अगणित सैनिकों की विशाल सेना के साथ युद्ध किया जा सके। इसलिए मन्त्रियों के परामर्श के अनुसार उत्तर दिशा की ओर वाल पहाड़ पर एक मजबूत दुर्ग का निर्माण हुआ इसके बाद कुल देवी से प्रार्थना की गयी। देवी ने भविष्यवाणी की कि हिन्दुओं की शासन शक्ति नष्ट हो जायेगी। देवी ने अपनी भविष्यवाणी में नव निर्मित दुर्ग का नाम गजनी रखने का आदेश दिया। इस दुर्ग के निर्माण का कार्य समाप्त होते-होते राजा गज को समाचार मिला कि रोम और खुरासान की फौजें वहुत समीप आ गयी हैं। उसी समय युद्ध के वाजे वजने लगे और सेना की तैयारी होने लगी। ज्योतिपियों ने युद्ध के लिए रवाना होने के लिये मुहूर्त वताया। उसके अनुसार माघ महीने की सुदी त्रयोदशी वृहस्पति वार के दिन एक पहर के बाद वह शुभ बड़ी थी। उस शुभ मुहूर्त में युद्ध की यात्रा करने के लिए बाजे बजे और राजा गज ने अपनी सेना लेकर सोलह मील के आगे जाकर मुकाम किया। दोनों म्लेच्छ सेनायें युद्ध की प्रतीक्षा कर रही थीं। जिस दिन राजा गज की सेना ने शत्रु के निकट पहुँचकर मुकाम किया, उसी रात को खुरासान वादशाह के पेट में भयानक पीड़ा उत्पन्न हुई जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। जव रोम के बादशाह शाह सिकन्दर को यह समाचार मिला तो उसने बहुत रंज किया और अन्त में उसने राजा गज की सेना के साथ युद्ध करने का इरादा कायम रखा। उसने अपनी फौज को तैयार होने की आजा दी और हाथी पर हौदा कसे जाने के बाद वह युद्ध के लिए तैयार होकर उस हौदे पर बैठा। फौज के तैयार होते ही यवन सेना में युद्ध के बाजे बजे। वह फौज आगे की तरफ रवाना हुई। - 5
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/११
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