फल लेकर राजरानी ने लौटते हुए दूर से देखा कि उसके वालक के मस्तक पर अपना फन फैलाये हुए एक साँप बैठा है। इस दृश्य को देखकर वह एक साथ कॉप उठी और चिल्ला कर रो उठी। उसी समय एक ब्राह्मण वहाँ पर आ पहुंचा। रानी की इस दुरवस्था को देखकर उसने कहा 'आप घवराये नहीं। घबराने का कोई कारण भी नहीं है। वालक के मस्तक पर साँप का यह दृश्य उसके उज्जवल भविष्य की सूचना दे रहा है। आपका बालक किसी समय राज सिंहासन पर बैठेगा।" ब्राह्मण के मुख से इस बात को सुनकर रानी को बहुत सन्तोप मिला। उसने ब्राह्मण से कहा- "इस समय मेरा यह वालक बहुत भूखा है।" वह कुछ और भी कहना चाहती थी, उसी समय उस ब्राह्मण ने खोह गाँव की तरफ संकेत किया। उसने बताया कि वहाँ जाने पर आपकी सभी प्रकार व्यवस्था हो जायेगी। यह कहकर ब्राह्मण वहाँ से चला गया। बालक के मस्तक से सॉप पहले ही हटकर चला गया था। रानी ने ब्राह्मण की बातों पर विश्वास किया और वह अपने बालक को लेकर खोह गॉव की तरफ रवाना हुई। उस नगर में प्रवेश करके रानी ने एक स्त्री से बातें की और पूछा- "क्या मुझे कोई नौकरानी बनाकर रख सकता है? मैं केवल भोजन और कपड़ा चाहती हूँ।" वह स्त्री खोह गॉव के मीणा राजा के यहाँ महल में दासी थी। रानी की बात को सुनकर वह उसे अपने साथ महल में ले गयी और अपनी रानी से उसने बातें की। मीणा रानी ने धोलाराय की माँ को अपने यहाँ दासी बनाकर रख लिया और उसे अपनी दासियों के साथ रहने की आज्ञा दी। धोलाराय की माँ प्रसन्नता के साथ मीणा रानी की दासियों के साथ रहने लगी। उसने वहाँ पर किसी को अपना परिचय नहीं दिया। वहाँ रहते हुये उसको बहुत दिन बीत गये। एक दिन धोलाराय की माँ को वहाँ पर भोजन बनाने का कार्य करना पड़ा। उसका बनाया हुआ भोजन मीणा राजा लालनसी को बहुत पसन्द आया। राजा ने भोजन की प्रशंसा करते हुये कहा 'आज का भोजन बहुत स्वादिष्ट और मधुर बना है।" मीणा राजा के इस प्रकार भोजन की प्रशंसा करने पर धोलाराय की मॉ बुलायी गयी। उस समय धोलाराय की माँ को अपना परिचय देना पड़ा। मीणा राजा ने परिचय जानकर उसका वड़ा सत्कार किया और उस दिन से वह धोलाराय की माँ को वहन कहकर सम्बोधित करने लगा। धोलाराय उस दिन से मीणा राजा का भाञ्जा होकर वहाँ पर रहा। लगातार उसका आदर और सम्मान बढ़ता गया। अपनी अवस्था के अनुसार धोलाराय ने वहाँ पर रहकर क्षत्रियोचित योग्यता प्राप्त की। इन दिनों में दिल्ली के सिंहासन पर तोमर वंशी राजा था। उसने समस्त भारतवर्ष में अपनी प्रभुता का विस्तार किया था। दूसरे राजा उसे कर दिया करते थे। चौदह वर्ष की अवस्था मे धोलाराय को कर देने के लिए मीणा राजा ने दिल्ली भेजा। धोलाराय को इस कार्य के सम्बन्ध में पाँच वर्ष तक दिल्ली में रहने का अवसर मिला। इन्हीं दिनों में एक मीणा कवि के साथ उसका परिचय हुआ। धोलाराय एक राजपूत था। उसने राजवंश में जन्म लिया था। इसलिये उसके शरीर की रगों और नसों में राजपूती रक्त लहरें मार रहा था। 97
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