पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१०१

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भारतवर्ष के दूसरे स्थानों की तरह यहाँ पर भी शीतला और तिजारी के रोग पाये जाते हैं। शीतला का रोग प्रायः छोटे बच्चों को अधिक होता है। इस रोग की यहाँ पर चिकित्सा नहीं की जाती है। उसका सेहत होना शीतला माता के ऊपर छोड़ दिया जाता है। तिजारी और इस प्रकार के दूसरे रोगों की चिकित्सा होती है। परन्तु उपचार के लिए प्राचीन विचारों पर लोग अधिक विश्वास करते हैं। दुर्भिक्ष- अकाल अथवा दुर्भिक्ष मरुभूमि के लिए एक साधारण रोग है। वहाँ के लोग कहा करते हैं कि भूखी माता के आने से दुर्भिक्ष अथवा अकाल पड़ता है। यहाँ पर ग्यारहवीं शताब्दी में एक अकाल पड़ा था और वह बारह वर्ष तक रहा था। उसके कारण राजस्थान के अनेक राज्यों को भीपण क्षति पहुंची थी। यो तो मरुभूमि में तीसरे-चौथे वर्ष अकाल पड़ा ही करता है। सन् 1812 ईसवी में जो अकाल पड़ा, वह चार वर्ष तक बरावर रहा। उसमें न जाने कितने लोगों की जानें गयी थीं। गरीव लोगों के समूह अपने-अपने स्थानों को छोड़कर गंगा के निकट मैदानों में चले गये थे और वहाँ पहुँचकर उन लोगों ने अपने बच्चों को वेचकर अनाज प्राप्त किया था। मरुभूमि के राज्य के लिए दुर्भिक्ष और अकाल कितने भयानक होते हैं, इसका सहज ही अनुमान किया जा सकता है। फसल, पशु और वृक्ष- मरुभूमि के पशुओं में ऊँट विशेष स्थान रखता है। वह हल में जोता जाता है, उसके द्वारा कुए से पानी खींचा जाता है। ऊँट अपने मालिक के लिए मरुभूमि की यात्रा में पीने के लिए मश्कों में पानी ले जाता है और वह पानी कई दिनों तक काम देता है। ऊँट के पैरों की बनावट ऐसी होती है, जिससे वह मरुभूमि में चल सकता है। उसके मुख की बनावट ऐसी होती है, जिससे वह काँटेदार पेड़ों की पत्तियों को खाकर मरुभूमि में जीवित रह सकता है। यही कारण है कि वहाँ के लोग अधिकतर ऊँट रखते है। यह भी एक प्रकृति की विशेषता है कि अन्य स्थानों की अपेक्षा मरुभूमि के ऊँट अधिक श्रेष्ठ होते हैं। वहाँ के राज्यों में ऊँट युद्ध के काम में आते हैं। इसलिये सभी राजा अपने यहाँ अधिक ऊँट रखते हैं। जैसलमेर की सेना में ऊँटों की संख्या दो सौ है। वहाँ के सभी सरदार अपनी सेना रखते है और उस सेना में ऊँट भी होते हैं। प्रत्येक ऊँट पर दो आदमी बैठते हैं। एक का मुख ऊँट की तरफ और दूसरे का उसकी पूँछ की तरफ होता है। युद्ध में ऊँटों के प्रयोग कई प्रकार से होते हैं। खर अर्थात् गधा- मरुभूमि में अन्य पशुओं में गधा भी पाया जाता है। नील गाय, सिंह और हिरन भी मरुभूमि के कुछ भागों में मिलते हैं। यहाँ पर वाघ, लोमड़ी, सियार और सिंह भी पाये जाते हैं। पालतू पशुओं में ऊँटों के अतिरिक्त घोड़े, बैल, गायें, भेड़ें और बकरियाँ भी पायी जाती हैं । गधे हल जोतने में भी काम आते हैं। बकरियों और भेड़ों को लोग अधिक संख्या में यहाँ पर पालते हैं। यहाँ के लोगों का विश्वास है कि वकरियॉ कार्तिक से लेकर चैत तक बिना पानी के रह सकती है। लोगों का यह विश्वास सही नहीं है। हरी पत्ती और हरी घास खाने के कारण वे कई-कई दिनों तक बिना पानी के बनी रहती हैं, यह सम्भव है। दाऊदपोतरा और भट्टी पोह के थलों की बकरियाँ और भेड़ें गर्मी के आरम्भ में सिन्ध के मैदानों में चली जाती हैं, उनको रखने वाले गड़रिया लोग उनके दूध का मट्ठा बनाकर पीते हैं और उनके 93