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दृश्य तीसरा अंक राजकुमारी-सुनती हूँ। महाराणा के उद्योगों को दिल्ली का बादशाह सन्देह और भय की दष्टि से देखता है और वह चाहे जब मेवाड़ पर आ धमकेगा। रत्नसिंह-इसकी क्या चिन्ता है, वह जब भी मेवाड़ में आयेगा यह तलवार उसका स्वागत करेगी (तलवार निकाल कर हवा में घुमाता है)। राजकुमारी-एक अर्ज करूं। रत्नसिंह-कहो कुमारी। राजकुमारी-नाराज न होना। रत्नसिंह-कभी नहीं। राजकुमारी-आप वीर पुत्र हैं। आपके पूज्य पिता महाराज ने बड़े-बड़े कारनामे किये हैं। रत्नसिंह-और हमारे पूर्वजों की मर्यादा भी मेवाड़ में सर्वोपरि है। हम त्यागी चूंडाजी के वंशधर हैं कुमारी ! राजकुमारी-आपके चरणों की दासी होना मेरा परम सौभाग्य है परन्तु रत्नसिंह-परन्तु क्या ? राजकुमारी-मैं भी हाड़ी हूँ कुमार ! हाड़ाओं का वंश भी हेठा नहीं। रत्नसिंह हाड़ाओं के अमर कारनामे जगद्विख्यात हैं। राजकुमारी-मेरी एक प्रतिज्ञा है। रत्नसिंह-वह क्या?