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दूसरा अंक दृश्य ] एक सखी-प्रभात, जहाँ आकांक्षाओं की कोमल कलिकाएँ अवि- कसित रहती हैं। प्रातःकालीन मन्द ममीर की भाँति जहाँ सरल-शुद्ध प्रेम की भीनी महक हृदय को विक- सित करती रहती है । जहाँ चिन्ता की धूल-गर्द नहीं, अधिकार मद की दुपहरी नहीं, जहाँ केवल उन्मुक्त तितलियों की सी उड़ान है, जहाँ ऊषा की सुनहरी किरणों की भॉति मनोरम अल्हड़पन है। जीवन का वह प्रभात कैसा सुन्दर-कैसा प्रिय-कैसा पवित्र है सत्रो ! दूसरी-सचमुच । परन्तु यौवन जीवन की दुपहरी है। उसमें जब वासना की प्रचण्डता आती है तो फिर संसार का कुछ और ही रूप दीखने लगता है। उसका एक अलग ही सौन्दर्य है। जहाँ तेज है, तप है, उत्कर्ष है और शक्ति का समुद्र है। रानी-परन्तु उस प्रखर सौन्दर्य में भी एक भीपण वस्तु तो दुर्दभ्य वासना का ज्वार है। उसे यदि सीमित रखा जाय तो यौवन जीवन का सर्वोत्कृष्ट भाग है। नहीं तो पतन का सरल मार्ग। दूसरी सखी-देवी। मध्याह्न के बाद प्रखर तेजवान सूर्य का पतन तो होता ही है। रानी-उसे पतन क्यों कहती हो सखी । विकास की एक सीमा है। तुम क्या कहना चाहती हो कि जीवन में प्रखरता