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दूसरा अंक दृश्य] ६६ निमल-वही, जो अभी आपने छिपादी है और जिसे पलकों में बसा रही थीं। कुमारी-(रुष्ट होकर )बड़ी दुष्ट है तू , दूर हो । निर्मल-जाती हूँ महारानी से सब हकीक़त कहे देती हूँ। (जाना चाहती है) , कुमारी-ठहर, सुन एक बात । निमल-जाने दीजिये-मैं जरा महारानी...... कुमारी-(हंसकर ) मार खायगी। निमल-जी हाँ, और खा ही क्या सकती हूँ। कुमारी-अच्छा सुन। निर्मल-कहिये। कुमारी-( उदास होकर )कैसे कहूँ? निमल-मैं समझ गई । पर चिन्ता क्या है। कुमारी-(आँखों में आँसू भर कर) तूने सब बातें नहीं सुनीं। निर्मल-कौन बातें कुमारी-दिल्ली से दूत आया था। निमल-देख चुकी हूँ, सुन भी चुकी हूँ। कुमारी-अब क्या होगा? निमल-महाराज ने बादशाह से दो महीने की मुहलत मांगी है। कुमारी-इसके बाद? निमल-इन्कार कर दिया जायगा।