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आठवाँ दृश्य (स्थान-रूपनगर का अन्तःपुर । समय-रात्रि। राजकुमारी चारुमती एकान्त में राजसिंह की मूर्ति को गोद में लिये बैठी गा रही है।) पाहुन पलकों में बस जाना। नेह नीर हग छलक रहे अब । गीले नैन पखारेंगे पद। मूक प्रतीक्षा अश्रुत पदध्वनि, इस जीवन के ओर छोर तक- अविकल कल तक आ जाना। पाहुन पलकों में बस जाना। अमित तुम्हारी स्मृति ही का धन, रखा रही आँचल में बाँधे। अपने में खोई मी बैठी- इस सूने मन्दिर में आकर पीछे मत फिर जाना। पाहुन पलकों में बस जाना। (तस्वीर को एक टक निहारती है) कुमारी-प्रभात के सूर्य की किरणों की भांति तुमने मेरे ग की अँधेरी कन्दरा में प्रवेश किया ..और उज्ज्वल आलोक बखेरा। श्राशर का एक सार मुझे तुम वक् खींचे लिये