राजसिंह महाराणा राजसिंह राजपूताना के प्रकाशमान नक्षत्र थे। उन्होंने समस्त राजपूत शक्ति के निस्तेज होने पर भी, अपनी आत्मा शक्ति और साधारण सत्ता से प्रबल प्रतापी मुग़ल बादशाह औरंगजेब का बड़ी मुस्तैदी और योग्यता से मुकाबिला किया। राजसिंह की विशेषता, राजपूतों की वह प्राचीन प्रसिद्ध जूझ मरने की भावना नहीं अपितु विलक्षण सेना नायकत्व-रणपाण्डित्य, दूरदर्शिता और साहस में है। उन्होंने अस्तंगत राजपूत सत्ता को एकबार अपने पराक्रम से फिर से उभारा । उन्हीं की बदौलत औरंगजेब की बढ़ती हुई हिन्दू मन्दिरों के विध्वंस की प्रवृत्ति रुकी। उन्हीं की सहायता और आश्रय पाकर राठौरों ने विपत्ति सागर से उद्धार पाया और अन्त में मुराल तख्त का भाग्य उनके हाथ का खिलौना बना । राजसिंह ने बड़ी से बड़ी राज- नैतिक विपत्तियाँ अपने सिर पर दूसरों के लिए ली। जजिया के विरोध में उनका औरंगजब के नाम लिखा हुआ प्रसिद्ध पत्र उनके साहस और उनके भोज का परिचायक है। वे अपने युग में हिन्दुत्व का प्रतिनिधित्व करते थे। उनका जीवन एक हिन्दु प्रतिनिधि के नाते उस काल के समस्त भारत के हिन्दुओं में अप्रतिम था। उनके व्यक्तित्व से हिन्दुओं को बहुत जीवन मिला था। कहना चाहिए कि आधुनिक उदयपुर की गद्दी की दृढ़ता का बहुत अंश तक राजसिंह ही कारण हैं। उनका जन्म सन् १९९६ में २४ सितम्बर को हुआ। और सन् १६५२ की १०धी अक्टूबर में २३ वर्ष की आयु में गद्दी
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