दो शब्द यह नाटक मैट्रिक व इण्टरमीडियेट के विद्याथियों के लिए लिखा गया है, इसलिये इसमें नाटय-कला की बारीकियों का उतना, खयाल नहीं रखा गया जितना कि विद्यार्थियों की ज्ञान- वृद्धि का । नाटकीय जटिलता तथा प्रवचन की कृत्रिम शैली भी नहीं काम में ली गई है । भावगाम्भीर्य भी वहीं तक है जहाँ तक मैट्रिक व इण्टरमीडियेट की योग्यता के विद्यार्थी समझ पा सकें। यथासाध्य चेष्टा ऐसी की गई है कि जिससे वीरवर राणा राजसिंह के सम्बन्ध में अधिक से अधिक जानकारी विद्यार्थियों को हो जाय। यद्यपि नाटक की भित्ती इतिहास है, और उसमें नाटकीय रंग भरने के लिये कल्पना काम में लाई गई है। परन्तु उस कल्पना में सबसे बड़ी चेष्टा यह की गई है कि राजपूती उत्सर्ग और त्याग की तत्कालीन एक रूपरेखा विद्यार्थीगण के मन पर अति हो सके। पुस्तक में पात्र लगभग सभी ऐतिहासिक हैं। सजीवन इन्स्टीट्यूट शहादरा-दिल्ली वा०१८ श्रीचतुरसेन वैध
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