यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दृश्य] पाँचवाँ अंक २२७ जेबुन्निमा-(बैठ कर ) शुक्रिया, आप भी तशरीफ रखिये, महारानी। चारुमती-(बैठ कर ) शाहजादी को बहुत तकलीफ हुई होगी। यहाँ न दिल्ली के रंगमहल के सामान, न सुविधायें । शाहजादी-आप एक कैदी की इस कदर खातिर करती हैं महा- रानी । जहाँ आप हैं वहाँ क्या नहीं है। चारुमती -आप कैदी नहीं है शाहजादी हैं। कहिये, मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ। शाहजादी-आपकी शराफत मैं नहीं भूलूंगी। कहिए आपकी कुछ खिदमत भी बजा ला सकती हूँ। चारुमती-बहुत कुछ । यदि आप शहनशाह को यह समझा दें कि शहनशाह अपने मुल्क का मा-बाप होता है और उनकी रियाया उनकी औलाद । चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान-उन्हें एक ही नजर से देखना उनका धर्म है। शाहजादी-महारानी, सल्तनत की पेचीदगी और उलझनें बादशाहों से बहुत से ऐसे काम करा देती हैं जिन्हें सब लोग नहीं समझ पाते । ताहम मैं आपके खया- लात को दाद देती हूँ। चारुमती-(निर्मल से ) शहजादी को इन-पान दे । (इन-पान देकर बिदा करती है) (पदो गिरता है)