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दृश्य ] पाँचवाँ अंक बादशाह-उन पर कैसी मुसीबत आई है। तहब्बुरखां-वे पहाड़ी इलाकों में जहां तक पहुँच चुके हैं वहां से आगे बढ़ने का रास्ता ही नहीं है । घोड़े, ऊँट, तोप- खाना आगे एक कदम भी बढ़ नहीं सकता। वहां न रसद है न पानी, न दुश्मन, जिनसे लड़ा जाय । शाहजादा ने कुछ पैदल और चुने हुए सवार लेकर घाटियों के रास्ते भीतर घुसने की कोशिश की थी मगर ज्योंही घाटियों में घुसे ऊपर से राणा की छिपी हुई फौज बड़े-बड़े पत्थर बकिर फौज की चटनी बना देती है। उनकी हालत ऐसी ही है जैसे कोई कुत्ता बन्द बावर्ची- खाने का दर्वाजा भडमड़ा कर फिर वापस लौट आता है भीतर नहीं घुस पाता । उधर मौज्जमशाह कांकरोली. में अटके पड़े हैं। बादशाह-किस लिए? तहब्बुरखां-पहले तो उनकी फौजों को आगे बढ़ने की राह ही नहीं है। दूसरे, वह रास्ता बनाकर आगे बढ़े भी तो एक तो यह बहुत ही मुश्किल काम है। दूसरे, उन्हें बड़ा भारी एक खतरा है। बादशाह-खतरा क्या है ? तहब्बुरखां-यह, कि अगर पीछे से राजपूतों ने उनकी रसद का रास्ता रोक दिया तो कैसी बीतेगी ? राणा ने इस चालाकी और होशियारी से अपने पड़ाव डाले हुए हैं