२०४ राजसिंह [छठा गोपीनाथ राठौर-ऐसा ही होगा। राणा-युक्ति ऐसी करनी चाहिए कि आप तीनों सेनापति मार्ग . में एक दूसरे के नजदीक ही छिप रहें। हाँ, विक्रम.. सिंह जी के पास २ हजार सवार हैं ? विक्रमसिंहजी-जी हाँ। राणा-बहुत ठीक, आप पहाड़ पर न चढ़ सकेंगे। आप सब से पीछे रहें और कहीं समथल भूमि पर जंगल में छिप रहें। धूर्त मुग़ल धरती सूंघते बढ़ेगे। उन्हें हमारा भय छाया है। सम्भव है आपको पा जाय तो आप नाम मात्र को लड़कर पीछे हट जाइए । जब शत्रु आगे बढ़ जाय, तो उसकी पीठ तोड़ने को तैयार रहिए। विक्रमसिंहजी-ऐसा ही होगा। राणा-और आप गोपीचन्दजी, दर्रे के सब से संकरीले रास्ते - पर दबकर बैठ जायँ । मोहकमसिंहजी बीच में छिपे रहेंगे । शत्रु से कुछ छेड़छाड़ न करेंगे। ज्योंही शत्रु दरे के मोर्चे पर पहुँचे आप काट शुरू कर दें। बगल से पहाड़ीबाज की तरह झपट कर मोहकमसिंह जी जनेऊआ हाथ मारेंगे और पीछे से विक्रमसिंह । दुश्मन वहीं कट मरेगा। तीनों-ऐसा ही होगा महाराज । राणा राजसिंह-अकबर की असफलता सुनकर लाचार. बादशाह स्वयं अजमेर से चल पड़ेगा हमें मालूम है उसके पास
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