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दृश्य ] पाँचवाँ अंक १८७ पूताने में कौन था जो हिन्दुओं के इस अपमान से उन्हें बचाने की आवाज़ उठाता । लाचार मुझे ही मुंह खोलना पड़ा। योग्य था। रावत रत्नसेन-घणीखम्मा अन्नदाता, यह काम आप ही के राणा:-सर्दारो, बादशाह को नाराज करने के लिये यही कारण काफी थे-पर मैं एक और भारी अपराध कर बैठा । मारवाड़ पति वीर महाराज जसवन्तसिंह को जमरद के थाने में बादशाह ने मरवा डाला। जब उनकी विधवा रानी और कुंवर जोधपुर लौट रहे थे, बादशाह ने जोधपुर को खालसा कर लिया और रानी तथा कुँवर को दिल्ली आने का हुक्म दिया। बादशाह की नियत खराब देख रानी कुँवर को लेकर वहाँ से भाग निकली और मेवाड़ की शरण ली। दुर्गादास राठौर ने मुझे सब हकीकत कही। मुझे मारवाड़ के भावी राजा को आश्रय देना पड़ा। फिर बादशाह के बारम्बार लिखने पर भी मैंने उन्हें न दिया। राव केसरीसिंह-हम मर मिटेंगे पर शरणागत की रक्षा करेंगे। राणा-सारो, हमारे इन्हीं सब अपराधों का दण्ड देने और हमसे जजिया वसूल करने प्रतापी आलमगीर भारी सेना लेकर हम पर चढ़ आया है और अजमेर में छावनी डाली है। तथा एक बड़ी सेना के साथ