१८४ राजसिंह [पहिला राणा-अकेला मेवाड़ ही ऐसा बचा है जिसने न तो बादशाह को बेटी दी और न स्वाधीनता । राणावत भावसिंह-जब तक मेवाड़ में एक भी सीसोदिया है वह ऐसा कभी न करेगा। राणा-यह बात मुग़ल बादशाहों को हमेशा खटकती रही है और समय-समय पर उन्होंने मेवाड़ को दलित करने में अपनी पूरी शक्तियों को आजमाया है। मेवाड़ की चौबा-चौआ जमीन वीरों के रक्त से रंगी पड़ी है और मेवाड़ को कभी सुख की नींद सोना नसीब नहीं हुआ। मेवाड़ की न जाने कितनी कुलाङ्गना अपने उठते अरमान हृदय में लिये जलकर राख हो चुकी हैं। (आँसू भर आते है ) महाराज मनोहरसिंह-(आवेश में ) आज भी मेवाड़ में उत्सर्ग और वीरता के भाव जीवित हैं और आवश्यकता पड़ने पर मेवाड़ वैसा हो जौहर दिग्यावेगा जैसा उसके पूर्वजों ने दिखाया है। राणा-मेवाड़ पर शाही नाराजी के ये पुराने कारण तो हैं ही अब और नये कारण भी पैदा हुए हैं। महाराज दलसिंह-नये कारण कौन-कौन हैं, हम सुना चाहते हैं। राणा-(मुस्कुराकर) सुनिए, इसीलिये आप लोगों को इकट्ठा किया गया है। हमने शाही आज्ञा की बिना परवा
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