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पाँचवाँ अङ्क । पहिला दृश्य स्थान-उदयपुर । महाराणा की राजसभा । युद्ध की मन्त्रणा हो रही है, समस्त सरदार हाजिर हैं। बीच में महाराणा राजसिंह विराजमान हैं।) राण-श्राप सर्दार गण आज एक बड़ी महत्वपूर्ण समस्या पर विचार करने एकत्र हुए हैं। उसी समस्या पर मेवाड़े के जीवन, मरण और प्रतिष्ठा का प्रश्न अवलम्बित है। कुँवर जयसिंह-सेवाड़ अपनी प्रतिष्ठा की प्राण देकर रक्षा करेगा। कुँवर भीमसिंह और उसके प्राण महंगे दामों बिकेंगे राणा-(मुस्कुराकर) शान्त होश्रो कुँवर ! अभी सब बाते सुन लो। आप लोग जानते हैं कि मुग़ल शक्ति ने राज- पूताने की वीरता को लोहा लगा दिया है। सभी राज- पूत घसने अपनी पान भूल कर केवल शाही नौकरी बजाना ही नहीं प्रत्युत शाही हरम में अपनी पुत्रियों को बेगम बनाना भी अपने लिये शोभा की बात समझे । बैठे हैं। रावल जसराज-पर यह उनके लिये डूब मरने की बात है।