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नवा दृश्य (स्थान-उदयपुर का राजभवन । दुर्गादास और राणा राजसिह परस्पर बातचीत कर रहे हैं ! समय-सायकाल ।) दुर्गादास-महाराज ! अब हमें कुछ न कुछ कर डालना चाहिए। यदि हम युक्ति से काम न लेगे तो निकट भविष्य में जो हम पर भावी विपत्ति आरही है उससे हमारी रक्षा होना किसी भी भाँति सम्भव नहीं है। राण दुर्गादास, आपकी बातें विचार के योग्य हैं और आपकी युक्ति भी महत्पूर्ण है । मैं स्वीकार करता हूँ कि हम अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर भी मुग़ल साम्राज्य को नहीं उलट सकते। दास-इसी से महाराज, मैंने यह जाल रचा है। साम, दाम, दण्ड, भेद यह तो राजनीति है। पहिले हमने शाहजादे मुअज्जम से यह प्रस्ताव किया था कि वह बादशाह के विरुद्ध बगावत का भएडा खड़ा करे और हिन्दु शक्तियों का सम्मान करे, तो राजपूतों की सम्मिलित शक्ति की सहायता से बादशाह बना दिया जायगा। राणा-फिर, क्या शाहजादा इस पर राजी हुआ ? दुर्गादास-पहिले वह राजी होगया था। राव केसरीसिंह चौहान और सैनिक ने उससे बातचीत की थी, परन्तु अजमेर