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राजसिह [पहिला ब्राह्मण-हम समझे तुर हमें मूर्ख समझते हो, हम काशी में .१८ वर्ष पहिला नागरिक-भाड़ मे जायें तुम्हारे १८ वर्ष तुमने हमें. शूद्र कहा? भूल हुई। . सब लोग-परे भाई जाने दो, जाने दो पहिला नागरिक नहीं कहो, हम शूद्र है ? (आस्तीन चढ़ाता है) ब्राह्मण-नारायण, नारायण । अजी तुम ठाकुर हो भैया । हम से सब लोग-हाँ जी, तो महाराणा जी का रत्नतुला तुमने देखाहै। पहिला नागरिक-देखा नहीं तो क्या । कह तो रहे हैं। इन्हीं बॉखों से देखा है। हीरा मोती-मानिक और लालों के ढेर देखकर आँखें चौंधयाती थीं। बड़े-बड़े राजा महाराजा सरदारों ने यह महायज्ञ देखा। देखते-देखते राणा के शरीर बराबर रत्न तोल कर ब्राह्मणों और दरिद्रों में बाँट दिये गये। सब-धन्य, धन्य । वाह ! क्यों नहीं, राजसिंह सा नरपति होना दुर्लभ है। एक-'होनहार विरवान के होत चीकने पात' आप लोग देखना महाराणा राजसिंह के हाथों बड़े-बड़े काम होंगे। बामण-हमने महाराणा की जन्मलग्न देखी है। महाराणा परम प्रतापी विजयी वीर है। (नेपथ्य में गाजे-बाजे और बन्दूकों के छुटने का शब्द)