दृश्य तीसरा अंक १५७ योद्धा-महाराज, कहाँ तक उस वीर गाथा को बयान करूँ। किसान जैसे दरोंत से खेत काटता है उसी प्रकार चूणावत वीर ने शत्रु सेना को काट डाला । उनका शरीर शत्रुओं की लोथों के ढेर में मिला। राणा-त्यागमूर्ति चूडाजी का घराना मेवाड़ में त्याग और तप का आदर्श कायम कर चुका है। कहो वीर कितने योद्धा युद्ध भूमि से बचे हैं। योद्धा-कुछ उँगलियों पर गिनने योग्य । परन्तु चिन्ता नहीं महाराज ! शरणागत की रक्षा हो गई और मेवाड़ की लाज रह गई। राणा-वह देश और जाति धन्य है जहाँ हाडी रानी जैसी बालि- काएँ और रत्नसिंह जैसे वीर बालक जन्म लें। जिनके जीवनउत्सर्ग और आदर्श के नमूने हों। जाओ वीर, तुम आराम करो। मैं इस योद्धा का और उसकी विजयिनी सेना का वह स्वागत करूंगा कि जिसका नाम । सारो आओ वीर पूजा की तैयारी करें। सर्दार गण-चलिए अन्नदाता ! (सब जाते हैं ) चारण विरद गाता है- येह विरद रजपूत प्रथम मुख झूठ न बोले। यहे विरद रजपूत पर-त्रिय काछ न खोले।
पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१७२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।