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तीसरा दृश्य (स्थान रूपनगर और दिल्ली का तिराहा । शाही सेना की छावनी पड़ी है । युद्ध की तबाही के चिन्ह इधर उधर दिखाई पड़ते हैं । बादशाह अपने खीमे मे दिलेर ग्वॉ से बाते करते हैं । समय-रात्रि ।) बादशाह-क्या कहा, मेवाड़ की मौज ? दिलेर खाँ-जी हाँ, जहाँपनाह । यह राना की फौज थी। बादशाह-मगर हम मेवाड़ पर तो चढ़ाई नहीं कर रहे थे। दिलेर खाँ-मैंने कहा था हुजूर, फौज के सरदार ने लापरवाही से जवाब दिया, हमें काटकर जहाँ जाना हो चले जाओ। बादशाह-कौन था वह बदनसीब । दिलेर खाँ-वह एक कम उम्र नौजवान था। अभी रेखें भीगी थीं, उसकी आँखों में आग, बोली में तुफान, तलवार मे कयामत और झपट में बिजली थी। वह बहशत का पुतला बना था। उसके गले में एक औरत का कटा हुआ सिर लटक रहा था। बादशाह-औरत का सिर ? दिलेर खाँ-जी हाँ, हुजूर | वह मरने के इरादे से आया था, शाही फौज में वह जिधर गया, काई-सी चीरता चला