चौथा अंक १ दृश्य १३६ विक्रमसिह-बार बचा कर) रामसिंह, बचपन में मैंने तुझे कितना तलवार चलाना सिखाया था-पर तुझे कुछ न पाया। देख, वार इस तरह किया जाता है। (वार करता है-रामसिंह की तलवार मन्ना कर टूर- जाती है) कह-सिर काट लूँ या छाती फाड़ डालू । रामसिंह-राजा के अपमान का बदला समय पर लिया जायगा । (जाता है) (शार्दूलसिंह कई सिपाहियों के साथ आता है) विक्रमसिंह-शार्दूलसिंह, अभी हमें बहुत से काम करने हैं कुछ. शाही सैनिक किले में ठहर रहे हैं और बादशाह के आने की प्रतीक्षा में हैं, पर बादशाह अभी तीन दिन की मंजिल पर है, आज वे किसी हालत में पहुँच नहीं सकते, किन्तु विवाह का मुहूर्त तो आज ही है, सावधान रहो । सूर्यास्त के बाद सभी शाही सिपाही कैद कर लिये जायें और महलों के सब द्वार और राहों पर अपने विश्वस जनों का पहरा रहे । (कान में कुछ कह कर ) ज्यों ही यह संकेत कोई कहे-उसे बेखटके भीतर आने दो। जो यह संकेत न बोले-उसे तुरन्त मार दो। जाओ। शार्दूलसिंह-जो आज्ञा महाराज ! (शार्दूलसिंह जाता है)
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