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आठवाँ दृश्य । स्थान रूपनगर। चामुडा के मदिर का बाहरी भाग। समय- प्रातःकाल । स्त्री-पुरुष आ-जा रहे हैं। मन्दिर में से होम की ध्वनि श्रा रही है । ब्राह्मण वेद पाठ कर रहे हैं । एक ओर से दो यवन सैनिक अाकर चबूतरे पर बैठ जाते हैं। दूसरी ओर से विक्रम सोलंकी और दुर्जन हाडा बाते करते आते हैं। विक्रम-मैं कह देता हूँ कि जब तक शरीर में प्राण हैं मैं यह ब्याह नहीं होने दूंगा। दुर्जन-क्या करोगे तुम ? विक्रम-इस तलवार की धार का रस दुर्जन-रहने दो तलवार, बादशाह की ५० हजार सेना के सामने तुम्हारी तलवार क्या करेगी ? फिर जव राजा ही अपना शत्रु है। विक्रम-कौन उस छोकरे को राजा कहता है, राजा मै हूँ। दुर्जन-यों तो मैं भी कह सकता हूँ सेनापति मैं हूँ। विक्रम-तुम रूपनगर के सेनापति हो ही, दुष्ट राजा ने तुम्हें पदच्युत कर दिया तो इससे क्या ? दुर्जन-तुम्हारे राजा कहने ही में क्या सार है। (निराश होकर) हमारी शक्तियाँ सीमित है। हम कुछ न कर सकेंगे।