दृश्य] तीसरा अंक ११६ हायरे राजपूत जीवन ! (आंसूपोंछकर ) नहीं। आंखों में आँसू भरकर मुझे अपशकुन नहीं करना चाहिए । पृथ्वी और आकाश के देवता उनकी रक्षा करेंगे। यह देखो वे इसी ओर को कुछ संकेत कर रहे हैं। देखो घोड़े पर झुककर उन्होंने क्या कहा । यह कौन है ! अरे, यह तो उनका प्रियभृत्य गुलाब है। यह भी गर्दन टेढ़ी करके मेरी ओर को देख रहा है। लो वह इधर ही को चला। यह आ रहा है वह । स्वामी ने मेरे लिए कुछ सन्देश भेजा है। मेरे स्वामी ने । कल उन्होंने कहा था प्रिये ! प्रिये ! ओफ। (श्रानन्दविभोर होकर चुप हो जाती है। कक्ष में गुलाब आता है ।) गुलाब-जुहार हाड़ी रानी! रानी-ठाकुर, कैसे आए हो ? गुलाब-स्वामी का एक सन्देश हैरानी ? रानी-क्या संदेश है, कहो। गुलाब-वे कूँच कर रहे हैं। रानी-उनकी यात्रा शुभ हो । वे विजयी होकर लौटें। गुलाब-परन्तु रानी-परन्तु क्या ? गुलाब-उन्होंने कहा है। रानी-क्या कहा है ?
पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१३४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।