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. दृश्य तीसरा अंक ११७ रत्नसिंह-इस जन्म में अथवा उस जन्म में । सौभग्यसुन्दरी-कीर्ति के पुल पर होकर । रत्नसिंह-मैं अपना कर्तव्य पालन करने जाता हूँ। तुम अपना कर्तव्य पालन करना। सौभाग्यसुन्दरी-करूँगी। रत्नसिंह-इसी अल्पवय में | आशा प्रेम और आकांक्षाओं से परिपूर्ण सुलगते हुए हृदय को लेकर ? सौभाग्यसुन्दरी-निश्चय स्वामी ! रत्नसिंह-बहुत कठिन है प्रिये। सौभाग्यसुन्दरी-क्षत्रियबाला के लिये नहीं। रत्नसिंह-तब बिदा। सौभाग्यसुन्दरी-बिदा। रत्नसिंह-स्मर्ण रहे, अपना कर्त्तव्य । सौभाग्यसुन्दरी-निश्चिन्त रहिए। रत्नसिंह-(जाता-जाता उलट कर कुमारी को आलिङ्गन करता है फिर कुछ देर बाद) अब चला प्रिये, कर्तव्य का ध्यान रखना। ‘सौभाग्यसुन्दरी-(रोकर ) दासी पर इतना अविश्वास ? रत्नसिंह-(आँसू पोंछकर) अविश्वास नहीं। परन्तु अच्छा बिदा प्रिये! सौभाग्यसुन्दरी-बिदा प्राणेश्वर ! (रत्नसिंह तेजी से जाता है और सौभाग्यसुन्दरी उस भूमि पर जहाँ स्नसिंह खड़ा था, लेट कर फूट-फूट कर रोती है) (पर्दा गिरता है)