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दृश्य तीसरा अंक ११३ सौभाग्यसुन्दरी-क्षत्रियों की जय-पराजय दोनों ही विजय है। रत्नसिंह-कैसे कुमारी? सौभाग्यसुन्दरी-क्षत्रिय वीर तो आन पर जूझते हैं वे मर कर अमर होते हैं-यह तो आप जानते ही हैं। मैं मूर्खा कहाँ तक कहूँ। रत्नसिंह-तो जाऊँ कुमारी ! विदा। सौभाग्यसुन्दरी-जाइये आप ! (स्त्रिों में आँसू भरकर ) हम फिर मिलेंगे। रत्नसिंह-शायद यहाँ या वहाँ। सौभाग्यसुन्दरी-(आँसू गिराकर ) ऐसा न कहिए । रत्नसिंह-(हँसकर)यह क्या ? परीक्षा तो कठिन ही होती है कुमारी! सौभाग्यसुन्दरी-दासी का अपराध क्षमा करें। रत्नसिंह-आह वीरबाला! तुम्हारी जैसी क्षत्रिय कन्याएँ ही पुरुषों को बीर बनाती हैं, परन्तु सौभाग्यसुन्दरी-परन्तु क्या' रत्नसिंह-कहूँ? सौभाग्यसुन्दरी-कहिए। रत्नसिंह-मेरी एक इच्छा थी। सौभाग्यसुन्दरी-क्या ? रत्नसिंह-जाने से प्रथम सौभाग्यसुन्दरी-क्या ? ......