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राजसिंह [पाँचयाँ राणा-( गम्भीरता से ) परन्तु ब्राह्मण देवता । क्या यह प्रस्ताव कुमारी ने विपत्ति में पड़ कर किया है ? अनन्त मिश्र-नहीं श्रीमान् ' जिस वीर की यशोगाथा राजपूताने के घर-घर गाई जाती है, और जिनके प्रताप का डंका वीर भूमि को जाग्रत कर रहा है, जो राजपूत जाति के मुकुट रत्न हैं। उन्हें पाकर कौन बाला न धन्य होगी। महाराज, वह राजपूत बाला मन-वचन से आपकी महिपी हो चुकी। अब श्राप देवता और अग्नि के सन्मुख धर्म-पूर्वक उसे अपनी पत्नी बनावें। राणा-(सरदारों से ) आप सबका इस सन्बन्ध मे क्या मत है? रावत मानसिंह-(हाथ जोड़कर ) अन्नदाता । राज-कन्याओं को हरण करके रानी बनाना तो राजपूतों का सनातन व्यवहार है । राजकन्या अव श्रीमानों को छोड़ जायगी कहाँ। राणा-(कुछ देर मौन रहकर ) अच्छा, अब एक बात विचारने की रह गई। रावल समरसिंह-वह क्या महाराज। राणा-बादशाह अपनी ५० हजार सेना लिये रूपनगर की कुमारी को व्याहने आ रहा है। अब हम रूपनगर जायँ तो उदयपुर को अरक्षित नहीं छोड़ सकते और यदि हम सारी सेना लेकर भी जायें और शाही सेना से मुठभेड़ हो जाय और कदाचित, हम काम श्रावें