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-- [७] आक्रमण कर वहाँ की शाही सेना को तहस-नहस कर डाला। अब कुँवर जयसिंह ने १३००० सवार और बीस हजार पैदल सेना लेकर जिसमें ३० के लगभग बड़े २ सरदार थे। चित्तौड़ की ओर कूँच किया-जहाँ शाहजादा अकबर ५० हजार सेना लिए मुक्कीम था । जयसिंह ने रात को प्रबल आक्रमण किया और अकबर की सेना को तहस-नहस कर दिया । अकबर हारकर अज- मेर को भाग गया। राजपूतों ने हाथी घोड़े तम्बू निशान और नकारा छीन लिए । छावनी में आग लगा दी । यहाँ से भाग कर अकबर ने नाडोल मे मुकाम किया। वहाँ कुँवर भीमसिंह, राठौर गोपीनाथ और सोलंकी विक्रम ने १२००० सेना लेकर उसे घेर लिया, घोर युद्ध हुआ और उसका पूरा खजाना लूट लिया। इस प्रकार इस आक्रमण में भी बादशाह विफल हुआ और सुलह की बातें शुरू की। इतिहासकार कहते हैं कि इसी बीच राजसिंह की मृत्यु हो गई। राणा राजसिंह ने जितने बड़े २ काम किये उन सब में राजसमुद्र का निर्माण है, जिसके भीतर सोलह गाँवों की सीमा आई है। इस तालाब के बनवाने के विषय में इतिहासकार भॉति भाँति की बातें कहते हैं। कोई कहते हैं कि विवाह के लिए जैसलमेर जाते वक्त नदी के वेग के कारण राज- सिंह को दो तीन दिन रुकना पड़ा था, इसलिए नदी को रोककर उसने नालाब बनवाने का विचार किया। किसी का मत है कि उमने एक पुरोहित, क रानी, एक कुवर और एक चारण को मरवा डाला था जिसका किस्सा यों कहा जाता है कि ० सर- दार सिंह को माता ज्येष्ठ कुवर सुलतानसिंह को मरवा कर अपने पुत्र सरदारसिंह को राज्य दिलाने का प्रपंच रच रही थी-- उसने राणा को कुँवर पर झूठा शक दिलाया जिससे राणा ने सुलतानसिंह को मार डाला। फिर उसी रानी ने एक पुरोहित को