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६० • राजसिंह [दूसरा रखना चाहती है अब्बा जैसे उसके सामने जाने पर आलमगीर ही नहीं रहते । एक फर्माबार खॉविन्द बन जाते हैं-वह बॉदी उनके सामने शराब पीती है और अव्या उसके साथ ऐयाशी की दर्या में अपनी तमाम शानशौकत और बादशाहत जैसे डुबो देते हैं। (कुछ चुप रह कर होठ काटती हुई )मगर मैं यह नहीं बर्दाश्त कर सकती। अब्बा को उस नागिन के चपेट से बचाना होगा और उसके लिए यह एक रास्ता है। वह भोली भाली गँवार हिन्दू लड़की दिल से बादशाह को नफरत करती रहेगी और अब्बा उससे अपनी बादशाही तबियत की वची खुची मुहब्बत से उलझते रहेंगे। उधर मैं रंग महल पर अपना अटल रंग जमाऊँगी। (एक भरपूर शराब का प्याला पीकर मसनद पर लुढ़क जाती है, पर्दा गिरता है)