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राजबिलामा अभङ्ग जासं सासनं, मनौं सुरेश प्रासनं । रजंत राज रान जू, कहैं कवीन्द मानजू ॥ २० ॥ ॥ कवित्त ॥ पुष्कर गङ्ग प्रयाग, तिच्छ अभिराम विवेनिय । जगन्नाथ जालिपा देवि सुख संपति देनिय ॥ काशी बर केदार द्वारिका नाथ सु देखिय । गोदावरि गुनगेह बैजनायह सु बिशेषिय ॥ इक लिंग ईश अवलोकिगं टुष दोह गरुरहि टरें। राजेश राण निरखत नयन मान मनोबंछित फरै ॥२१॥ रस कूपिका रसाल कलपतरु अज्ज चढ़ कर । 'पारस रस पौरसा वेलि चित्रा सु देव वर ॥ हय गये हाटक पीर प्रवर सनमान पटम्बर । संपत्ता सुर रयण अद्य दुझ्यौ मनु अम्बर ॥ तुम दरश साई तेजन तुरी सकल लच्छि सुख संबर। राजेश राण निरखत नयन मान सनेबिंछित फ ॥२२॥ छन्द भुजङ्गी। तुही राम रूपं रवी बंश राजा, बजै जास तिहुं लोक मैं सुयश बाजा । तुही लच्छ ईशं लहैं लच्छ लाह, निराबाध तू ही सदा हिन्दु नाहं ॥ २३ ॥ तुही शंकरं एक लिङ्गं सरूपं, भनौं आदि बसे तुही हिन्दु भूपं । तुही ब्रह्म गोपाल ब्रह्माबिराजै, नवै निद्धि अप्पै पहूतं निवाजै ॥ २४ ॥