राजबिलाम। जमाति भूप जुत्तयं, सभा तहां संपत्तयं । बजे अनेक बज्जनं, गंभीर गेन गज्जनं ॥६॥ ढमक्कि जंगि ढोलयं, रचे सुरंग रोलयं ।' निहस्सियं निसानयं, मृदंग मेघ मानयं ॥ १० ॥ बजन्त शङ्ख बीनयं, नफेरियं नवीनयं । तुटंत तान तालयं, सुघंट घोष सालयं ॥ ११ ॥ सहनाइयं सुहावई, भनंकि भेरि भावई । झणं झणं कि झल्लरी, द्रमंकियं दुरव्वरी ॥ १२ ॥ हुडकि जंत्र हद्दयं, सारंगि चंग सदयं । गोरीश गीत गावई, प्रमोद चित्त पाँवई ॥ १३ ॥ बदन्त बिन बेदयं, अनेकसं उमेदयं । धषन्त ज्वाल धोमयं, हवी प्रभृति होमयं ॥ १४ ॥ भ. बिरुद्द भट्टयं, सुबोलि बन्दि थट्टयं । तिलक कहि ताँमयं, सु मोहितं स काँमयं ॥. १५ ॥ उच्छारि मुत्ति अखए, यहै आसीस अखए । रधू नरिन्द राजय, करौ स्वचित्त काजयं ॥१६॥ समप्पितं सु गामयं, दए सुलख दामयं । उतंग अश्व अंबरं, कनक्क चारु कुंजरं ॥ १७ ॥ दियौ सु अन्न दानय, गिनै यु कोन गानयं । पयोद जानि पूरय, दरिद्द कीन दूरयं ॥ १८ ॥ छजत शीश क्षत्रयं, समिटि सर्व सत्रयं । ढुरन्त चौर उज्जल, दिपैं हयं गयं दलं ॥ १८ ॥
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