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राजबिलाम। करी मदछक्क हक्क बज्जी चावदिसि । संपत कायर काय मिलिय दुहु सेन कट्टि असि ॥ तब बीच कीन हाडा नपति छत्रसाल रावहि अजब । संगहिय बाहु कमधज्ज को समझावै बिधि अक्खि सब ॥ २ ॥ हो कमधज्ज कुंभार मार इन से नन मंडहु । कैल पुरा राठूर भूलि मम अप्प न भंडहु॥ इनसों सर भूर कहा कही युग युग हिंदूपति । अप्पन अनुग समान मिच्छि आधीन प्रजाति ॥ आदित्य अपर ग्रह अंतरा अंतर त्यों इन अप्पनहि । इनसों यु टेक किज्जे नही ए असुरेश उथप्पनहि ॥ ३ ॥ दोहा । सुनि समझ्यो कमधज्ज सुत, जग जसवंत सु आप। राज कुंभर घन रोस रस, पेषे प्रबल प्रताप ॥४॥ तोरन तब बंदिय प्रथम, राज कुंभार रढाल । सिंह रूप सीसाद सौं अरि को मंडय पाल ॥५॥ .. कबित्त। . अरि को मंडय पाल देव दानव दिगपालह । मानव किती कमात प्रेत दीजै सायालह ॥ जिनके हरि किय जेर गिने नहि सो वर गडर। पीवहि जेहि पयोधि कहा तिन अग्ग गाउ सर ॥ जेगतेश- रांण सुन्न जंग जह डुलय तही असुरेश दलः । श्रीराज कुंभार सु. सनमुषहि वपु कमधज्जी किटोक बल ॥६॥