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राजबिलास । इहि भंति लिख्यौ कग्गद अनूप, भल दीन मिती सिर नाँउ भूप। हरषंत राव दिय अनुग हच्छ, सद्द यु नाम प्रोहित समच्छ ॥ ४७ ॥ बोलें नरिन्द सुनु राज बिम, हम काम उदयपुर नगर क्षिप्र । थिर रिद्धि मान तहँ हिन्दुयाँन, श्री जगत सिंह राना सुजांन ॥ ४८ ॥ तिन पाट पुत्र निय राज रूप, भल राज कुमा- रहिं नवत भूप । सो इच्छ सेन चतुरंग सज्जु, कन्या सुजि? हम बरन कज्जु ॥ ४ ॥ ___ल्यावहु सुबेगि इन लगन लील, ढलकति ढाल मम करहु ढील । भागम सुतास हम सुख अतंत, मनौं सु सच्च सब एह मंत ॥ ५० ॥ दोहा। मन हरपंत सु पट्ठवै, नालिकेर नर नाव । तपनिय साकति बर तुरग, भूषन कनक सुभाव ॥५१॥ ज़रकस के बहु योग युत, प्रवर भंति सिर पाउ । मुक्ता फल माला समनि, जरित कटार जराउ ५२॥ मेवा षादिम बहु मधुर, अरु कहि बहु अरदास । पठया मोहित उदयपुर, अप्पि सुदल उल्हास ॥५३॥ कवित्त । सुमति राव छत्रसाल दुतिय लहु पुत्रि अप्प दिय। गजसिंह सु नृप गेह पुत्र जसवन्त सिंह प्रिय ॥ मारु