यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

राजबिलास। प्रतापं, दमै दैत्य देहं सहै कौन दापं। हठालं हियालं गहैं आन हद्द', सुवर्णाद्रि तुल्ल अडुल्ल सु सद्द ॥१०॥ हलक्क सुहेरे हरावै हमीर, उडावै अरिं भिका ज्यौं समीरं । बहू मायुधं युद्ध सन्नद्ध बद्धौ, बली कौन जा मुख मंडै विरुद्धौ ॥ ११ ॥ बसे गेह जाकै महालच्छि वासं, बलं चातुरंगं सु चंग विलासं । धनी हिंदुआनं सदा नीति धारे, महामाइ महिषेशज्यौं मोर मारै ॥ १२ ॥ जसं राजसं तामसं जासि जोर, रसा कौंन राजा रनं ताहि रोरे । षलं षग्ग मागें करै पंड पंडं, अन- त्यान नत्यै सु दंडै अदंडं ॥ १३ ॥ ____ सदा सान कौभं हयं दंति दोत्तं, सदा जा सुरेशं सराहै सु सत्तं । बदं एक जीहा गुनं के बषाना, रजै आज जग मन्य जगतेश राना ॥ १४ ॥. प्रभू माहि जो सच्चि कर मंत पूछे, इला ईश महराण जगतेश अच्छे । चही विश्व मै . और अव- नीश ऐसे, तुझे मन्न मन्नै महीपाल तेसै ॥ १५ ॥ . __यही हिंदुनाथं यही हिंदु ईशं, यही हिंदु पालं महंत महेशं । यही हिंदु आधार हिंदूनि वानं, प्रजा पालकं पाल गो विप्र प्रानं ॥ १६ ॥ नियं वंस अवतंश ससु पाट नंद, दुति दीपए देह मानों दिनंद । तिनं अंग वर लछिनं दोइ तीशं, अषे कोटि वर्ष प्रजा दै असीसं ॥ १७ ॥