कठिनाई पड़ेगी । यह ग्रन्थ ठीक उमी समय लिखा गया है जिस समय इसमें वर्णित घटनायें हो रही थीं। अतएछ इमके वर्णन प्रामाणिक मानने योग्य हैं। उम समय की देशदशा यों थी । अकबरी ममय की सुख और शांति की छटा पर मलिनता आ गई थी । औरंगजेब ने बाप को कैद और भाइयों को धोखे से मार काट कर राज्य को अपने हस्तगत किया था। हिन्दुओं पर जज़िग ( एक प्रकार का कर ) जारी हो चुका था। राजघरानों की रूपवती बहू बेटियों पर औरंज़ब की बरी दष्टि प्रबलता से पहने लगी थी। औरंगजेब की कौन कहे उस समय के छोटे छोटे सूबेदार वा सैनिक अफसर भी हिन्दुओं की रूपवती और अपना ही माल समझते थे। देवमूर्तियां तोड़ी ..यों, मंदिरों के मसाले से मस्जिदें तैयार हो रही थी । ऐसे समय में हिन्दुओं की धार्मिक दशा कैसी संकटापन्न रही होगी, और उनके मनोभाव कैसे रहे होंगे इसका भी विचार पाठक को कर लेना चाहिये। जिस समय समस्त भारत में औरंज़ेबी जुल्म उपद्रव मच रहा था उसी समय संयोगवश राजपताना में बड़े थै-HAN (Rajामी और नामी नामी रामा हुए । जयपुर के सिंहासन.पर वीर श्रेष्ठ महाराजा जयसिंह जी, जोधपुर के सिंहासन पर प्रसिद्ध वीरवर महाराजा यशवन्त सिंह जी, और मेवार के पवित्र राजसिंहासन पर वीरकेशरी महाराणा रोजसिंह जी विराजमान थे । ये तीनों महाराज बड़े ही तेज- स्वी और स्वधर्मानुरागी थे। इनको औरंगजेब अपने हाथ की कठपुतली बनाना चाहता था परंतु बना न सका। तब
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