राजबिलास। कामदेव अवतार मिनि कितनिक इक्क सुमंत करि । बरमाल घल्लि गर तब बर्यो. इक सत प्रत उत्तम कुवरि ॥ ६४ ॥..... दोहा । पानि ग्रहन कीनौ नपति, इक सो सुंदरि अत्त । तरु मंडप सहकार तन, मंजरि मार सुमित्त ॥६॥ सहज सिंगारत सुन्दरी, बिबिधि सहज बादित्त। गीत सु सहजें गावही, ए से अद्भुत चित्र ॥ ६६ ॥ पुत्री परनित सुन पिता, सकल तच्छ संपत्ति । कर छोडावनि हरष करि, बहु विधिप्राप्पिय वित्त करी सुकरहा बहु कनक, हीरा मौक्तिक हार । पंच वर्ण जरवाफ पट, पाए सधन अपार ॥ ६८ ॥ हय दस किन किन वीस हय, दीन दायजै दान । साकति स्वर्ण पालन सब, गिनत सहस त्रय गान ६६ दासी किन इक किन सु दुइ सब विधि जांन सुजान। पुत्री प्रति दीनी पिता, सकल अधिक सनमान 00॥ छन्द विराज । बरी सब बाला, रमा ज्यों रसाला । मनी सुत्ति माला, लही लाष लाला ॥ ७१ ॥ दुरंमा दुसाला, हयं हिंस वाला। सरूवं सिघाला, पुलें ज्यों पँषाला ॥ ७२ ॥ सिंगारे सुण्डाला, महामत्त वाला।
पृष्ठ:राजविलास.djvu/३२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।