राजविलास । बिहंड भई ॥ प्रहरेक प्रमान महा झर मंडिय भारथ उद्धम भांति ठई ॥ बरें हूर समूर संपूर सुसूर सनेह गरें बर माल ठवें ॥ जयकार करंति बधाइ समुत्तिन मंगल गाय प्रसून अवें ॥१॥ कवित्त ॥ प्रमुदित अति प्रसून गीत रंभागन गावत ॥ बरत सु बर बर बीर बिमल मोतीन बधावत ॥ गरहिं घल्लि बर माल साषि दे सकल सर सुर ॥ पंकजनैनी पढ़त बरयों मैं प्रगट एह बर ॥ बेताल फाल बिकराल बपु.हास अह हरषत हसत ॥ असि झरझरंत तुत असुर धीर बीर रिण धर धसत ॥ २॥ असि अपार अकरार धार रिपुमार धपंतिय ॥ जंगवार जोधार भार करतार सुभंतिय ॥ झलमलंति झनकति खिज्जि षल मत्य बिपंतिय ॥ सोदामिनि- सोदरा समल सन अजय जपंतिय ॥ रँगी सूरँग रल- तल रुहिर सकल सत्रु संहारती॥ हिंदवान थान रक्खन सुहद भगवति प्रगटी भारती ॥ ३ ॥ बिफुरि हिंदु बर बीर ढोन असुरोन ढंढोरत ॥ हय गय नर संहार झार घन झंड झकोरत ॥ लुत लच्छि अलेष कह फुट्टी अकरारिय ॥ सोवत सुंदरि सत्य साहिजादा भय भारिय ॥ पलभलिय सु पल- तिय कुल सकल अक्ल बिकल हिय हरबरत ॥ भग्गो
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