२४९ राजविलास । ध्रुव रक्खन मेवार धर, लरन असुर संघात ॥ २५ ॥ मंगि हुकम महराण पें, है ठढे शिर नाइ। तब बीरा रु कपूर बर, सेंकर अप्पै सांइ ॥ २६ ॥ शिर चढाइ पुनि नाइ शिर, धुरिय निसाननि घाउ । बढि अवाज असुरान पर, चढ़ि जय सीह सुचाउ ॥७॥ कवित्त । प्रथम सुहोत निसान चढ़ति बज्जी चावद्दिशि । हय गय पक्खरि भर सनाह पहिरिय सुबंधि प्रसि ॥ दुतिय निसान महोत हसम घमसान घनाभ । मिले सबल सामंत सूर ज्यों समुद सलित अँभ ॥ बाज्यों सु तृतीय निसान जब तब जयसिंह चढ़े सुहय । चामर दुरंत उज्जल उभय नातपत्र नग रूप मय ॥ २८ ॥ चन्द्रसेन झाला नरिंद गजगाह बंध गुरु । चढ़े राव चहुबान सिंघ ज्यों सबर सिंघ बरु ॥ बैरी सल्ल पवार राय बीराधिबीर रण । सगताउत रावत सुमज्जि केहरि केहरि गुन ॥ रावत चोंडाउत रतन सी महुकम रावत बड़ सुमति। चहुवान केहरी सी चढ़ चपल तुरंगम चंड गति ॥ २८ ॥ महाराय भगवंत सिंह रुषमांगद रावत । षीची राव सुरेण फेंग चढ़ि पुरिय नषावत ॥ मानसिंह रावत सुमंत महुकम सिंघ रावत । गंगदास कूअर अभंग केहरि चोंडाउत ॥ माधव सुसिंह चोंडा मरद कन्हा
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