राज विलास। २३६ चढ़ भर केइ महा चित चंड ॥ अरेणिय जानि कि भीम उद्दड ॥ बंके बर बीर सभीर बिडर ॥ झनंकति षग्ग करे झकझूर ॥ २१ ॥ भरे रथ सल्थि प्राराब सभार ॥ किते धन रूब रु हेम दिनार ॥ भरे बहु भारहि ऊंट अपार ॥ किती भरि बेसरि भार बिभार ॥ २२ ॥ - पयद्दल बद्दल ज्यों दल पूर ॥ उड़ी रज अंवर ढक्किय सूर ॥ परे नन अप्पन प्रान की सुद्धि ॥ उपट्टिय जानि कि जोर अंबुद्धि ॥ २३ ॥ सुसंकर संकुरि कुंडलि शेश ॥ कटक्किय कच्छप पिटि बिशेश ॥ भये भयभीत पुले दिगपाल । डगं- मगि कोट रु दुर्ग दुकाल ॥ २४ ॥ यरत्थरि पत्थर सुत्थिर थान । भगे पुर पत्तन नैरभ यान ॥ रुके दर राह राह सुउट्टि दहल्ल ॥ सुसे सलिता सर नीर मुहिल्ल ॥ २५ ॥ मच्यो भय मालव देश मझार ॥ उड़े प्रज जानि कि टिड्डि अपार ॥ कहूतिय पुत्त कंहू गय कंत ॥ र. जननी कहु बाल रडंत ॥ २६ ॥ कहूपति भृत्य कहूपरवार ॥ कहू धन धान रहे निरधार ॥ कहू भय चोप यहूं परहत्य । नसे नर नारिन वृन्द अनत्य ॥ २ ॥ सुटे केउ लुटक झुटक लक्ख ॥ परें बहु कह
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