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२२२ राजधिलाम । सकि ससक्कि झि झलमलिय स्वेद तन, गय सुसुद्धि बर बुद्धि हत्थ दलमलत दीन मन । गहु २ सु जान पावै न गन गहु सु गंग हम गज गहन । हंसिहें जिहांन हत्यी गये इन सुबत्त कछु साह नन ॥ ३० ॥ धपे धींग पर धींग पेंग चढ़ि २ सुसेंग गहि । परतनाल परताल बज्जि पुरताल धुज्जि महि । कवच वान पपरनि करी झंकुरिय झमझम । तबल तर टंकुरिय निगम संकुरिय क्रमंक्रम। कलकलिय सुरव बंबरि बहरि अरकउपरि हरि बिडुरि। पिक्खे कुँप्रार मावत पिशुग लुब्ब २ जलनिधि लहरि ॥ ३१ ॥ करि अम्गे करि जूह बग्ग यंभे सुबाजि बर । कल हणि कंठल कार मंझि 'मोरला मुहर भर । रुक्कि राह खगबाह करहि करवाल झबक्कत । ज्यों सलिता जल पूर भाइ अड्ड गिरि रुक्कत । भय सेल मेल भयभीत मचि दंग जंग दरवरि दवरि । बढ़ि लोह छोह तनु मोह तजि समर ईश गंगा गवरि ॥ ३२ ॥ सार सार संघटे धार संधार संतुदृत्त । झमकि अग्गि झर जग्गि लग्गि पग झट षल षुदृत्त । बज्जि झनक षनंक केक झलमलत सुझांई । घुरिय सुघाट विघाट सोह हकरि निज सांई । कहि. वाह २ भल २ सुकहि बीर पचारत बिबिहि भति । रिन रोर धोर रलतल रुहिर गंग कुंपा झुझत सुमति ॥ ३३ ॥