राजबिलास । त्रिकोट थिरिसु कोशीशा थाटह । पौरि बुरज गुरूं प्रबल कठिन अग्गला कपाटह ॥ बहु कुण्ड बापि सर जल विमल बिबुधालय बसुधा बदित। देषे यु दुर्ग सब देश के चित्रकोट मा बसिय चित ॥ ४ ॥ दंडमाली। गढ चित्रकोट सु गाईयें, बसु सुजसु पटह बजा- ईयें। कुन्ती बहू गढ कोटयं, जग नहीं कोइ ने जो- टयं ॥ ५ ॥ उत्तंग गिर सम अंबरा, दिशि च्यारि दुग्र्गा डंबरा। सकुनी न जहं संचारयं, पहुँचें न जहं पद धारयं ॥ ६ ॥ प्राकार तीन प्रचंड है, मनु अमर आइसु मंड है। सुविशाल गज लँग बीस के, उत्तंग गज इकतीश के ॥॥ कोशीश पंकति कंतए, पटि मोरछा सम पंतए। जहँ नारि गुरु गंबूरयं, छुट्टत रिपु दल चरयं ॥८॥ गुरु बुरज गिरि सम गातए, बर पौरि सत्त वि- ष्यातए। भारी कपाट सुभग्गला, अति गाढ शृपल अग्गला ॥ ८ ॥ ____कहिं परधि द्वादस कोश की, अनभंग अंग अ- दोस की। दल देव निर्मित दुर्गए, अरि दलन गर्व अलग्गए ॥ २० ॥
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